एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesअसम की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने जब से ग़रीब परिवारों की बेटियों को शादी के स
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असम की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने जब से ग़रीब परिवारों की बेटियों को शादी के समय एक तोला (करीब 10 ग्राम) सोना देने का ऐलान किया है, वो सवालों के घेरे में आ गई है. इसकी एक बड़ी वजह अगले महीने के अंत तक होने वाले लोकसभा चुनाव भी है.
दरअसल, नागरिकता संशोधन विधेयक वाले मुद्दे को लेकर प्रदेश में व्यापक स्तर पर लोगों की नाराज़गी झेल चुकी भाजपा पर लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह की लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करने के आरोप भी लग रहे हैं.
हाल ही में प्रदेश की सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए पेश किए गए अपने बजट में अरुंधति योजना के तहत सालाना पांच लाख रुपए से कम आय वाले परिवार की बेटियों को शादी के समय एक तोला सोना देने की घोषणा की है.
राज्य सरकार के अनुसार इस योजना का फ़ायदा आर्थिक रूप से कमज़ोर सभी समुदाय के लोगों को मिलेगा. फिर चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान.
लेकिन बजट में इस योजना की घोषणा करने वाले राज्य के वित्त मंत्री हिमंत विश्व सरमा के कुछ तर्क लोगों को रास नहीं आ रहें है.
वित्त मंत्री सरमा ने इस योजना पर कहा था कि युवतियों को विवाह के लिए एक तोला सोना देने से जहां कई समुदायों में शादी के समय सोना देने की प्रथा का पालन होगा वहीं इससे हिंदू और मुसलमानों में तलाक़ जैसी सामाजिक बुराइयां कम की जा सकेंगी.
वित्त मंत्री ने पिछले महीने बिहपुरिया के डोंगीबिल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, एक अप्रैल के बाद प्रदेश में जितनी भी लड़कियों की शादी होगी राज्य सरकार सभी को एक तोला सोना देगी.''
उन्होंने कहा, ''लेकिन इसके लिए सामाजिक विवाह से दो महीने पहले या फिर दो महीने बाद सभी समुदाय की युवतियों को संबंधित इलाक़े के विवाह पंजीयक के पास जाकर पहले विवाह पंजीकृत करवाना होगा तभी जाकर उन्हे एक तोला सोना मिलेगा. इसके लिए लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होना ज़रूरी है."
अपने भाषण में मंत्री कहते हैं, इस योजना के ज़रिए बाल विवाह पर रोक लगेगी और मुसलमान समाज में तीन बार तलाक़, तलाक़, तलाक़ कह कर महिला को छोड़ना संभव नहीं होगा. न ही मंदिरों में शादी करने वाले लोग अपनी पत्नी को छोड़ सकेंगे. क्योकि इसके लिए उसे क़ानूनी तौर पर भी तलाक़ लेना होगा जिसके तहत दुल्हन को गुजारा भत्ता देने की शर्त रहेगी."
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इमेज कॉपीरइटFacebook/himantabiswasarmaImage caption वित्त मंत्री हिमंत विश्व सरमा लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने की ज़रूरत
मुस्लिम समाज से आने वाली 27 साल की मनीषा बेगम मंत्री की इस बात से किसी भी तरह सहमत नहीं है. बीबीसी से बात करते हुए मनीषा कहती हैं, सरकार अगर यह सोचती है कि एक तोला सोना देने से शादी नहीं टूटेगी या फिर तलाक़ नहीं होंगे, ये बिलकुल गलत है. शादियां टूटने के कई और कारण होते हैं. दो लोगों के बीच विवाह जैसा बंधन आपसी समझ से निभाया जाता है. सोना देने की बात से शादी के बंधन का कोई लेनादेना नहीं होता है."
हाल ही में सगाई के बंधन में बंधी मनीषा कहती हैं, सरकार की इस योजना से हो सकता है गरीब लोगों को अपनी बेटी की शादी के समय कुछ मदद मिलें लेकिन सरकार को महिला सशक्तीकरण की दिशा में ज्यादा काम करने की ज़रूरत है. अगर आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को अच्छी शिक्षा मिलेगी, नौकरी मिलेगी तो वे ख़ुद अपने लिए न केवल सोना ख़रीद सकेंगी बल्कि जीवनभर के लिए आत्मनिर्भर बनेंगी."
मनीषा यह भी स्वीकार करती हैं कि कई बार इस तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ उन लोगों को मिल जाता है जिन्हें इसकी ज़रूरत भी नहीं होती है और कई बार ज़रूरतमंद लोग इससे वंचित रह जाते है. सरकार को यह भी देखना होगा.
इसी क्रम में वित्त मंत्री की बात पर असहमति जताते हुए गायत्री चौधरी कहती हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है कि सोना दे देने से शादी से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाएंगी. सरकार लड़कियों को शिक्षा और रोज़गार देकर मज़बूत बनाने का काम करें. तभी वे इन मुश्किलों के ख़िलाफ़ लड़ सकेंगी."
वो कहती हैं, असम एक ऐसा प्रदेश है जहां लड़कियां काफ़ी शिक्षित है. हमारे यहां दूसरे प्रदेशों के मुक़ाबले दहेज प्रथा कभी नहीं रही. सरकार पढ़ी-लिखी लड़कियों को उनकी क़ाबिलियत के अनुसार नौकरी देने की व्यवस्था करें. उच्च शिक्षा की चाहत रखने वाली लड़कियों की आर्थिक रूप से मदद करें. अगर लोग ग़रीब और अशिक्षित रहेंगे तो उन्हें सोना देने से समस्याएं कम होने की बजाय ज़्यादा बढ़ेंगी."
ग़रीबी रेखा से नीचे वाले लोग 34 हज़ार रुपए का एक तोला सोना लेने के लिए अपने लड़के-लड़कियों की जल्दी शादी करवा देंगे, उससे उन्हें बाद में और समस्याएं होंगी. सरकारी योजना का फ़ायदा लेने के लिए कुछ लोग फर्जीवाड़ा भी करेंगे."
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इमेज कॉपीरइटDILIP KUMAR SHARMAसोने की योजना
तमिलनाडु के बाद असम देश का दूसरा ऐसा राज्य है जहां की सरकार ने लड़कियों को शादी के समय सोना देने की योजना का ऐलान किया है.
इससे पहले 2011 में तमिलनाडु में जयललिता सरकार ने दसवीं से आगे की पढ़ाई करने वाली लड़कियों को 25 हजार रुपये और चार ग्राम सोना जबकि स्नातक लड़कियों को सोने के सिक्के के साथ 50 हजार रुपये देने की योजना चलाई थी.
बाद में साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने लड़कियों की शादी में सहायता के लिए आठ-आठ ग्राम के सोने के सिक्के देने की भी एक योजना शुरू की थी.
तलाक़ जैसी पीड़ा से गुजर चुकी बेनज़ीर अरफ़ान कहती हैं, एक तोला सोना देने से किसी का तलाक़ रुकने वाला नहीं है. अगर सरकार प्रदेश की लड़कियों के लिए कुछ अच्छा करना चाहती है तो उसे सरकारी नौकरी दें ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके."
मैं ख़ुद तीन तलाक की शिकार हुई हूं. मेरा तलाक़ ज़मीन ज़ायदाद को लेकर हुआ था. कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना एक महिला के लिए कितना मुश्किल काम होता है, मैं समझ सकती हूं. क्योंकि मैं इस परेशानी से गुजर चुकी हूं. लिहाजा सरकार एक तोला सोना देने का लालच देने के बदले महिलाओं का भविष्य सुरक्षित करें ताकि आगे चलकर उसे किसी के सामने हाथ फैलाना न पड़े."
असम में भाजपा सरकार की इस योजना को कई लोगों ने सही बताया है तो कइयों का मानना है कि लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भगवा पार्टी खासतौर से मध्यम वर्ग वाले मतदाताओं को ऐसी योजनाओं से अपनी तरफ़ लाने के प्रयास में है.
सोशल मीडिया पर भी ज़्यादातर महिलाओं की प्रतिक्रिया थीं कि एक तोला सोना के बदले सरकारी नौकरी दी जाती या फिर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाता तो लड़किया ज़्यादा मज़बूत होती.
कुछ लोग इसे दहेज को बढ़ावा देने की बात से भी जोड़कर देख रहें है. लेकिन वित्त मंत्री शर्मा का कहना है,ये दहेज नहीं है क्योंकि सरकार सोना लड़के को नहीं दे रही है. यह लड़की के नाम पर दिया जाएगा."
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इमेज कॉपीरइटDILIP KUMAR SHARMAImage caption गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकिल हाफिज रसीद अहमद चौधरी साल में तलाक़ के पांच ही मामले
गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकिल हाफ़िज रसीद अहमद चौधरी कहते हैं, यह तो (एक तोला सोना) सरकार किसी उदेश्य के तहत दे रही है. जहां तक दहेज का सवाल है तो उसमें अगर कोई लड़की के घर वाले से डिमांड करके कुछ लेता है तो वो क़ानून की नज़र में दहेज कहलाएगा. एक तोला सोना देने से तलाक़ के मामले में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा."
मौजूदा समय में बहुत पैसे वाले और शिक्षित लोगों में तलाक़ हो रहें है. शादियां टूट रही हैं. इसमें केवल इतना होगा कि जो लोग सोना लेने के लिए अपना विवाह पंजीकृत करवाएंगे उनकों फिर क़ानूनी प्रक्रिया से तलाक़ लेना पड़ेगा. राज्य सरकार की एक तोला सोना देने की यह योजना सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए नहीं है बल्कि सामने आ रहें चुनाव को प्रभावित करने के लिए है."
असम सरकार की तरफ़ से नियुक्त मुस्लिम विवाह-तलाक़ रजिस्ट्रार और सदर काजी मौलाना फख़रुद्दीन अहमद कहते हैं, तलाक़ को लेकर जो हल्ला-गुल्ला कर रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि हर मर्द तलाक़ देने के लिए तैयार बैठा है. ये बिलकुल ग़लत है. मेरे दफ्तर में साल में क़रीब पांच मामले तलाक़ के आते हैं, उनमें काउंसलिंग करने के बाद दो मामलों में तो मियां-बीवी वापस मिल जाते है."
बाक़ी के तीन मामले इतने जटिल होते हैं जहां दोनों के लिए ज़िदगी निभाना काफ़ी मुश्किल हो जाता है. उस तरह के मामलों में सरकार एक तोला सोना तो क्या कुछ भी करें वहां तलाक को रोकना संभव ही नहीं है."
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इमेज कॉपीरइटDILIP KUMAR SHARMAImage caption मौलाना फखरुद्दीन पिछले 25 साल से सरकारी काजी के तौर पर काम कर रहे हैं सियासत है हिस्सा है यह योजना
पिछले 25 साल से सरकारी काजी के तौर पर काम कर रहे मौलाना फखरुद्दीन कहते है, इस समय लड़कों के मुकाबले तलाक को लेकर लड़कियां ज्यादा आ रही है. लेकिन हमारी कोशिश रहती है कि हम उनकों समझा कर उनके साथ कई बैठक कर समस्या का समाधान निकाले. ऐसे कई मामले भी हैं जहां लड़की तलाक भी नही लेती है और अपने शौहर के साथ भी नहीं रहती है. उनका सरकार क्या करेगी. जिसको तलाक देना है उसे बड़ी से बड़ी अदातल भी नहीं रोक सकती. एक तोला सोना के नाम पर यह केवल सियासत की जा रही है."
एक सवाल का जवाब देते हुए काजी कहते हैं, असम में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी बेहद गरीब और अशिक्षित है. सरकार एक तोला सोना देने के बदले शिक्षा व्यवस्था में और सुधार करें ताकि ज्यादा लोग शिक्षित हो सके. शिक्षा के अभाव के कारण लोग तीन-तीन शादियां करते हैं. ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. किसी भी शिक्षित मुसलमान के 10 बच्चे नहीं हैं. सरकार इन लोगों को सोना देने के बदले अगर शिक्षित करेगी तो तलाक अपने आप बंद हो जाएगा."
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प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अनिर्बान रॉय कहते है, शादी दो दिलों का मिलन होता है, दो परिवारों का मिलन होता है. ऐसे में सोना या चांदी दो दिलों को न मिला सकता है और ना ही तोड़ सकता है. अगर राज्य सरकार को लड़कियों के लिए ऐसी कोई योजना शुरू करनी थी तो जब सरकार बनी थी तभी करनी चाहिए थी. मेरा मानना है कि यह योजना महज एक अल्पकालिक राजनीतिक नौटंकी है, क्योंकि सामने चुनाव है."
एक सवाल का जवाब देते हुए पत्रकार रॉय कहते है, मध्य प्रदेश में जब शिवराज सिंह चौहान की सरकार थी तब उन्होंने लड़कियों के लिए स्वागतम लक्ष्मी जैसी कई योजनाएं शुरू की थी जिसमें बच्ची पैदा होने के बाद से उसकी उच्च शिक्षा तक और बाद में शादी तक आर्थिक रूप से मदद की जाती थी. असम में भाजपा सरकार को एक तोला सोने की राजनीति छोड़कर ऐसी कोई बेटी उन्मुखी योजना को प्रदेश में लागू करना चाहिए था जिसके आगे चलकर अच्छे परिणाम सामने आते."
असम की भाजपा सरकार भले ही इस योजना का फ़ायदा एक परिवार से केवल दो लड़कियों को देगी लेकिन आम चुनाव से पहले ख़ासकर महिलाओं के लिए इस तरह की कई और योजनाओं की घोषणा कर पार्टी ने मध्य और ग्रामीण मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की चाल ज़रूर चल दी है.
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