एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले को शुक्रवार को म
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सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले को शुक्रवार को मध्यस्थता के लिए भेज दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों वाली पीठ ने तीन सदस्यों को मध्यस्थता समिति का सदस्य बनाया है.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस फ़कीर मोहम्मद इब्राहिम ख़लीफ़ुल्ला इस समिति के प्रमुख होंगे.
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उनके अलावा पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल हैं.
दिलचस्प ये है कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या मामले की मध्यस्थता करने वाले तीनों लोग दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते हैं.
इस अहम समिति के तीनों मध्यस्थों पर एक नज़र डालते हैं:
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesश्री श्री रविशंकर
श्री श्री रविशंकर का जन्म एक तमिल अय्यर परिवार में साल 1956 में हुआ था.
बीबीसी से बात करते हुए एक बार उन्होंने अपने बचपन के बारे में बताया था.
उन्होंने कहा था, ''मैं बचपन में नटखट था और आज भी हूँ. मैं चाहता हूँ कि हर बच्चा शरारती हो और बड़ों को जितना सता सके उतना सताए. लेकिन आज बच्चे जब तनाव में होते हैं तो दूसरों को तंग करते हैं.''
उन्होंने कहा था, ''खेल मुझे बचकाने लगते थे. बचपन में भी मैं गंभीर चिंतन करता था. जब लोगों को क्रिकेट खेलते देखता था तो ये सोचता कि इससे क्या मिलने वाला है? मेरी संगीत, नृत्य और नाटक में बहुत रुचि थी. खेल में रुचि नहीं थी.''
श्री श्री रविशंकर कई बार फ़िल्मी सितारों के साथ भी नज़र आए हैं.
लेकिन फ़िल्मों को लेकर वो क्या सोचते हैं?
उन्होंने कहा था, ''मैं फ़िल्मी सितारों को हस्ती या सितारे की तरह नहीं देखता. मैं तो सारे जीवन को ही एक फ़िल्म मानता हूँ. जो भी मनुष्य मेरे सामने आता है वो भी मुझे एक फ़िल्म ही लगता है. हर आदमी हीरो और हीरोइन है. सभी की अपनी एक कहानी है. उसे ही सुलझाने में लगा रहता हूँ.''
रविशंकर ने बताया था कि ज़िंदगी धूप तुम घना साया...जैसे गाने भक्त लोग सत्संग में गाते हैं. उनकी आँखों से गीत फूट पड़ता है. हालांकि उनका पसंदीदा गाना- 'चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे'है.
जब पाकिस्तान दौरे पर गए श्री श्री रविशंकर
क़रीब सात साल पहले मार्च के ही महीने में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर पाकिस्तान के दौरे पर थे.
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में अपने एक आश्रम की शुरुआत के बाद उन्होंने बीबीसी से कहा कि वो 'तालिबान और दूसरे उग्रपंथियों से बात करने को तैयार हैं'.
एक लंबे साक्षात्कार के दौरान श्री श्री रविशंकर ने दावा किया, “मेरा पहले से मक़सद रहा कि किसी न किसी तरह से लोगों के बीच की दूरी को कम करें. अमन और सुकून की नई लहर लाएं.” ये बयान भारत में काफी चर्चा में रहा था.
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesराम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद पर श्री श्री रविशंकर
मार्च 2017 में श्री श्री रविशंकर ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि अगर अयोध्या विवाद नहीं सुलझा तो 'भारत में सीरिया जैसे हालात हो जाएंगे'.
तब श्री श्री रविशंकर ने एनडीटीवी को बताया था, ''अगर कोर्ट कहता है कि ये जगह बाबरी मस्जिद की है तो क्या लोग इस बात को आसानी और खुशी से मान लेंगे? ये बात 500 सालों से मंदिर की लड़ाई लड़ रहे बहुसंख्यकों के लिए कड़वी गोली की तरह होगी. ऐसी स्थिति में खून-ख़राबा भी हो सकता है.''
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में रविशंकर ने कहा था, 'बाबरी मस्जिद/राम जन्म भूमि के विवाद का हल अदालत के बजाए इसके बाहर निकाला जाना चाहिए. मुस्लिम समाज राम मंदिर पर अपना दावा त्याग दे और इसके एवज़ में उन्हें अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन दी जाए."
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesयमुना किनारे श्री श्री रविशंकर
श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ़ लिविंग ने मार्च 2016 में दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह आयोजित किया था. यमुना के तट पर हुए इस समारोह पर आपत्ति जताते हुए एक व्यक्ति ने एनजीटी में शिकायत की.
इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे.
एनजीटी ने जानकारों के एक पैनल से मामले की जांच कराई, जिसने एनजीटी को बताया कि कार्यक्रम के दौरान यमुना के तट को इतना भारी नुकसान पहुंचा है कि उसकी भरपाई नहीं हो सकती.
इसके लिए एनजीटी ने आर्ट ऑफ़ लिविंग पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया था.
तब श्री श्री रविशंकर ने एनजीटी का आदेश मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने का फ़ैसला किया था.
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इमेज कॉपीरइटYou tube grabजस्टिस एफ़एम खलीफुल्ला
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस फ़कीर मोहम्मद इब्राहिम ख़लीफ़ुल्ला दिवंगत जस्टिस एम फ़कीर के बेटे हैं. वो 68 साल के हैं.
ख़लीफ़ुल्ला ने अपना करियर अगस्त 1975 से बतौर वकील शुरू किया था. वो श्रम कानून से जुड़े मुद्दों पर काफ़ी सक्रिय रहे हैं. साल 2000 में जस्टिस ख़लीफ़ुल्ला को मद्रास हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया गया.
साल 2011 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का कार्यकारी चीफ़ जस्टिस नियुक्त किया गया और इसके बाद उन्हें दो अप्रैल साल 2012 को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया.
बीसीसीआई की कार्यशैली में बदलाव से जुड़े आदेश देने वाली बेंच में वो तत्कालीन चीफ़ जस्टिस टीएस ठाकुर के साथ शामिल रहे.
साल 2016 में वह सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए.
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इमेज कॉपीरइटsrirampanchumediation.comश्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू एक वरिष्ठ वकील और जाने-माने मध्यस्थ हैं. वो 'द मीडिएशन चैंबर्स' के संस्थापक भी हैं.
ये संस्था विवादों का निबटारा और मध्यस्थता करती है. श्रीराम पंचू 'एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मीडियेटर्स' (IMI) के अध्यक्ष भी हैं.
उन्होंने साल 2005 में भारत का पहला ऐसा मध्यस्थता केंद्र बनाया जो अदालत से सम्बद्ध था. श्रीराम पंचू ने भारतीय क़ानून व्यवस्था और तमाम मामलों में मध्यस्थ की भूमिका बख़ूबी निभाई है.
पंचू ने भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई व्यापारिक और कारोबारी विवादों का निबटारा करवाया है. उन्होंने पारिवारिक संपत्ति विवाद से लेकर दिवालियापन, कारोबारी टकराव, आईटी विवादों और बौद्धिक संपदा से जुड़े मामलों में भी सफलतापूर्वक मध्यस्थता करवाई है.
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक विवादों का निबटारा भी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम पंचू को असम और नगालैंड के बीच एक विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया था. इसके अलावा कोर्ट उन्हें मुंबई में पारसी समुदाय से सम्बन्धित एक विवाद को निबटाने के लिए भी मध्यस्थ बना चुकी है.
उन्होंने क़ानूनी मध्यस्थता पर Settle for More और Mediation: Practice & Lawनाम की किताबें भी लिखी हैं. भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने पंचू को 'सम्मानित मध्यस्थ' और 'देश के सबसे वरिष्ठ मध्यस्थों में से एक' जैसे विशेषणों से भी नवाज़ा है.