एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटEPAकांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गऱीब परिवारों की आय को सालाना 72 हज़ार रुपए तक पहुँचा
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गऱीब परिवारों की आय को सालाना 72 हज़ार रुपए तक पहुँचाने का चुनावी वादा कर तो दिया है मगर इसे लेकर अनिश्चय बना हुआ है.
जहाँ विपक्ष ने इसे सीधे ख़ारिज कर दिया है वहीं आर्थिक जानकारों का कहना है कि ये आसान काम नहीं होगा.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी के एलान को इस बात की स्वीकारोक्ति बताया कि ना तो इंदिरा गांधी, ना उनके बेटे और ना ही उनके उत्तराधिकारियों की यूपीए सरकार ग़रीबी दूर कर सके.
उन्होंने फ़ेसबुक पर एक लेख लिखा है जिसमें विभिन्न योजनाओं का नाम और उनके आंकड़े देते हुए ये ट्वीट किया - क्या पीएम नरेंद्र मोदी पहले ही ग़रीबों को उससे कहीं ज़्यादा मदद दे रही है जितना कि कांग्रेस वादा कर रही है?
राहुल गांधी के एलान को बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने कांग्रेस की हार का एक संकेत बताया.
उन्होंने कहा,“अगर आपकी हार पक्की हो, तो आप लोगों को चांद देने का भी वादा कर सकते हैं. कौन इसे गंभीरता से लेगा?”
राम माधव ने कहा कि ग़रीब परिवारों को पहले ही विभिन्न योजनाओं में सहायता दी जा रही है तो ऐसे में कांग्रेस जो वादा कर रही है वो उन योजनाओं में दी जाने वाली सहायता के अतिरिक्त होगी या उसका ही हिस्सा होगी?
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी राहुल गांधी की घोषणा की आलोचना की है.
उन्होंने ट्वीट किया, ''चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से पहले भी घोषणाएं की जाती थी वैसे ही इस बार भी की गई है, कांग्रेस अध्यक्ष ने जिस योजना की घोषणा की है उससे वित्तीय घाटा और बढ़ेगा, काम न करने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा और यह योजना कभी लागू नहीं हो पाएगी.''
छोड़िए ट्विटर पोस्ट @RajivKumar1
True to its past record of promising the moon to win elections, Congress President announces a scheme that will burst fiscal discipline, create strong incentives against work and which will never be implemented. (1/2)#MinimumIncomeGuarantee @PMOIndia @FinMinIndia
— Rajiv Kumar ? (@RajivKumar1) 25 मार्च 2019
पोस्ट ट्विटर समाप्त @RajivKumar1
एक अन्य ट्वीट में राजीव कुमार ने लिखा कि मिनिमम इनकम गारंटी योजना देश की जीडीपी का 2 प्रतिशत हिस्सा लेगी और कुल बजट का 13 प्रतिशत हिस्सा उसमें चला जाएगा. इससे देश की जनता की असली ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाएंगी.
राजीव कुमार ने तीसरा ट्वीट किया और लिखा कि कांग्रेस पार्टी ने 1971 में ग़रीबी हटाओ का वादा किया, साल 2008 में वन रैंक वन पेंशन का वादा किया, साल 2013 में खाद्य सुरक्षा का वादा किया लेकिन इनमें से किसी भी वादे को पूरा नहीं कर सकी. ऐसा ही लोकलुभावन वादा कांग्रेस ने एक बार फिर किया है.
इमेज कॉपीरइटAFPफ़ायदा तो होता है पर सावधानी ज़रूरी
वहीं आर्थिक मामलों के एक जानकार ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि ऐसी योजनाएँ अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी हो सकती हैं मगर इसमें सावधानी बरतनी होगी.
आईसीआईसीआई सिक्योरिटिज़ के फ़िक्स्ड इनकम रिसर्च विभाग के प्रमुख ए प्रसन्ना ने कहा, “बड़े पैमाने पर कैश-ट्रांसफ़र की योजनाएँ अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. मगर दीर्घ अवधि में ऐसी योजनाएँ तभी कारगर होती हैं जब उन्हें ठीक से तैयार किया गया हो और भोजन, ईंधन जैसे मदों पर दी जानेवाली सब्सिडी को भी उनमें शामिल कर लिया जाए.”
राहुल गांधी ने न्यूनतम आय देने का वादा इससे पहले जनवरी में भी किया था. हालाँकि ये राशि कितनी होगी ये पहली बार उन्होंने 25 मार्च को ही कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक के बाद बताया.
इमेज कॉपीरइटAFPकैसे तय होगा कौन है हक़दार?
कांग्रेस की इस रणनीति को लेकर बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास ने जनवरी में जब अमरीका की एमआईटी यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफ़ेसर अभिजीत विनायक बनर्जी से बात की थी. तब प्रोफ़ेसर अभिजीत विनायक बनर्जी ने कहा कि न्यूनतम आय गारंटी को लेकर लोगों में काफ़ी सहानुभूति होती है मगर भारत जैसे विशाल और जटिल देश में इसका पालन करवाना बहुत बड़ी चुनौती है.
प्रोफ़ेसर अभिजीत विनायक बनर्जी ने सवाल किया,“अगर कोई आदमी काम करना बंद कर दे, और ग़रीब हो जाए, तो क्या वो भी इस योजना के तहत मदद पाने का हक़दार होगा? यानी किस आधार पर ये तय होगा कि कोई व्यक्ति आर्थिक मदद पाने का हक़दार है.”
प्रोफ़ेसर बनर्जी ने कहा,“हमारा अध्ययन बताता है कि ग़रीब लोग यहीं आकर पिछड़ जाते हैं, और जो कम ग़रीब लोग हैं, वो इसका फ़ायदा उठा लेते हैं. कुछ हद तक भ्रष्टाचार की वजह से और इस वजह से भी कि उन्हें ग़रीब लोगों की तुलना में इस बात की जानकारी ज़्यादा होती है कि कैसे इन योजनाओं का फ़ायदा उठाया जाए.”
ऐसी वेलफ़ेयर या जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर कई अर्थशास्त्री ये भी मानते हैं कि इससे लोगों के ग़रीबी में फँसे रहने का ख़तरा बढ़ जाता है.
अर्थशास्त्री विवेक दहेजिया ने इस बारे में बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास से कहा था, “अगर आप एक सीमा तय कर दें कि आपको आर्थिक मदद तभी मिलेगी जब आपके परिवार की आय 10 हज़ार रुपए से कम होगी, तो कोई भी इससे ज़्यादा क्यों कमाना चाहेगा.”