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बनारस: मोदी जी, ये तो 'सबका साथ सबका विकास' नहीं है

WikiFX
| 2019-05-13 09:24

एब्स्ट्रैक्ट:Image caption कचहरिया गाँव की रहने वाली बिमला देवी मिट्टी से पुती एक खुली झोपड़ी के भीतर भट्टी पर चा

Image caption कचहरिया गाँव की रहने वाली बिमला देवी

मिट्टी से पुती एक खुली झोपड़ी के भीतर भट्टी पर चाय खौल रही है.

बग़ल में रस्सी से बुनी चारपाई पर दो नौजवान बैठकर इस बात पर बहस कर रहे हैं कि आज शनिवार को पड़ोस के गाँव में बैंक खुलेगा या बंद रहेगा.

पतली मगर पक्की बनी रोड किनारे ये चाय की दुकान 79 वर्षीय जूना देवी की है.

उन्होंने कहा, “विधवाओं को कोई पेंशेन मिलेगी? बुढ़ापे में अब पान-चाय की दुकान चलाना मुश्किल हो रहा है और परिवार में कोई दूसरा सहारा भी नहीं.”

Image caption चाय की दुकान चलातीं जूना देवी

ये वाराणसी संसदीय चुनाव क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाला कचहरिया गाँव है.

हम यहाँ इसलिए पहुँचे हैं क्योंकि इसके पड़ोस वाले गाँव का नाम जयापुर है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया है.

वैसे तो बतौर सांसद नरेंद्र मोदी ने अपने वाराणसी चुनाव क्षेत्र में चार गाँवों, जयापुर, नागेपुर, ककहरिया और डोमरी को गोद लिया है लेकिन इनमें सबसे पहले नंबर जयापुर का आया था.

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वाराणसी शहर से क़रीब एक घंटे दूर जयापुर पहुँचने के पहले पड़ोस के दो गाँव पड़ते हैं जिनमें कचहरिया पहले मिल जाता है.

हम कचहरिया गाँव के हालात पर बात करने को आगे बढ़ते हैं कि उससे पहले ही दो महिलाओं ने आकर टोका, “मीडिया से आए हो?”.

जवाब देते ही बोलीं, “बहुत मीडिया वाले आए पिछले पाँच सालन मा. टीवी पर जयापुर को ही दिखाते हैं बस. हमारे घर चलिए दो मिनट के लिए.”

Image caption कचहरिया गाँव की रहने वाली बिमला देवी

इनमें से एक, अधेड़ उम्र की महिला बिमला हमें एक मेड़ पर चलवाते हुए अपने घर ले गईं.

एक दो कमरे की, पाँच फ़ुट ऊँची छत वाली, झोपड़ी के भीतर जाकर देखा कुछ बर्तन रखे हैं, एक चारपाई है और दो बल्ब लगे हुए हैं.

मैंने पूछा, “बिजली आती है आपके यहाँ?”, जवाब मिला, “बिजली अब पहले से बहुत बढ़िया हो गई है. साल भर पहले गाँव के लगभग सभी घरों में मीटर भी लग गए. लेकिन दिक़्क़त ये है कि तब से मीटर बंद पड़े हैं और हम लोग कटिया लगाकर बिजली लेते हैं”.

छोड़िए फ़ेसबुक पोस्ट BBC News हिन्दी

FB Live from Kachahariya, Varanasi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव जयापुर के पड़ोसी गांव कचहरिया के हालातों पर आम लोगों से बात कर रहे हैं बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव

Posted by BBC News हिन्दी on Friday, 10 May 2019

पोस्ट फ़ेसबुक समाप्त BBC News हिन्दी

इस सवाल पर कि कटिया लगाकर बिजली लेना तो ग़ैर-क़ानूनी है और इसे बिजली की चोरी कहा जाता है, बिमला मुझ पर बिफर पड़ीं.

“हम लोगों ने इतना कुछ माँगा, एक हैंडपंप ही मिल जाता क्योंकि कुएँ से पानी भरना पड़ता है. लेकिन कुछ भी नहीं मिला. अब ऐसे बिजली न ले तो क्या इस गर्मी में मार जाएँ”

Image caption कचहरिया गाँव के लोग हैंडपंप की मांग कर रहे हैं.

कचहरिया गाँव के लगभग सौ परिवार पीने के पानी के लिए एक कुएँ पर निर्भर हैं.

गाँव में न तो कोई पानी की टंकी है, न ही पानी की सप्लाई और कई बस्तियों के एक भी हैंडपंप नहीं है.

पिछले पाँच वर्षों में सरकार ने शौचालय तो बना कर दिए हैं लेकिन उनमें पानी की सप्लाई नहीं है.

साथ ही पीने के लिए साफ़ पानी का भी इंतज़ाम चाहिए.

मुलाक़ात सुनीता देवी से हुई जिनकी सुबह शुरू होती है घर में पानी लाने की चिंता से.

सुनीता देवी ने बताया, “जब बरसात शुरू होती है तो पानी गंदा होता है. आस पड़ोस में सौ लोग हैं, कम-से-कम चार महीने तक कुएँ का पानी नहीं पीते. एक-दो किलोमीटर जाते हैं तब पानी लेकर आते हैं.”

Image caption सुनीता देवी

कचहरिया गाँव से आगे पड़ता है चंदापुर. जयापुर से सटे हुए इस गाँव के बाहर अब एक मार्केट बन गया है जिसमें अंडे-ब्रेड से लेकर कूलर वग़ैरह बिकते हैं.

थोड़ी हैरानी हुई ये देखकर क्योंकि इस गाँव को तो सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद भी नहीं लिया गया. दो वर्ष पहले ये दुकानें भी नहीं थीं.

अहमद एक दुकानदार हैं जो इसकी वजह बताते हैं.

उनके मुताबिक़, “जब जयापुर में विकास की आँधी आई तब वहाँ के लोगों की डिमांड भी बढ़ने लगी. उस गाँव में तो जो खुला सो खुला, हम लोगों ने भी पड़ोस में उधार लेकर दुकानें खोलनी शुरू कीं क्योंकि सबको पता था जयापुर की तरक़्क़ी पक्की है”.

वैसे चंदापुर के भीतर जाने पर साफ़ दिखता है कि गाँव के बेहतरी के लिए कुछ काम हुए हैं. मिसाल के तौर पर शौचालय लगभग हर घर के बाहर बन गए हैं और सबसे आख़िरी बस्ती तक एक संकरी लेकिन पक्की सड़क भी बन चुकी है.

नाई की एक दुकान पर हमने भी डेरा डाल दिया.

Image caption नाई की दुकान चलाने वाले मुल्क राज शर्मा

दुकान के मालिक मुल्क राज शर्मा ने कहा, “ऐसा नहीं है कि काम नही हुआ. काम हुआ लेकिन कम हुआ. अब जो अगली सरकार आएगी तो चीज़ें और बढ़िया हो जाएँगी.”

इनकी दुकान के ठीक सामने एक जर्जर सी इमारत दिखी जिसकी चारदीवारी टूटी हुई है. पता चला ये गाँव का पंचायत कार्यालय है.

थोड़ा आगे बढ़ने पर कचहरिया गाँव की तस्वीर ताजा होने लगी.

कूड़े के ढेर, फ़ाइबर के बने लेकिन बंद पड़े शौचालय जिनमे से कई को लोगों ने भूसा जमा करने का गोदाम भी बना रखा है.

कुछ कच्चे मकानों के सामने दो महिलाएँ चबूतरे पर बैठ कपड़े धोते मिलीं.

पूछने पर की गाँव में पाँच सालों में क्या बदला है, एक ने कहा, “घूम के देख लीजिए, ख़ुद ही पता लग जाएगा. हम तो वैसे के वैसे रहे.”

इसी बीच उनके पति घर से निकले और पत्नी को चुप सा कराते हुए बोले, “सब ठीक है, सब बढ़िया है. सब कुछ हुआ है, मैं कह रहा हूँ न. मोदी जी ने बहुत काम किया है”.

लेकिन चंदापुर और कचहरिया में अब हमें ज़्यादा फ़र्क़ नहीं दिख रहा था.

मुलाक़ात गाँव के एक नौजवान अनिल गोस्वामी से हुई जो व्यापार करते हैं.

उन्होंने बताया, “मोदी जी का टारगेट था कि हम ख़ुद विकास नहीं करेंगे, तहसील के माध्यम से विकास होगा लेकिन उनके नाम से कोई बाहरी कंपनी आकर जैसे सोलर लाइट लगवा दे रही है, पानी का टंकी लगवा दे रही है. हमारे गाँव में होता तो अच्छा होता लेकिन हमारे गाँव में नहीं हुआ है”.

अब समय था पाँच सौ मीटर आगे बढ़ कर जयापुर में प्रवेश करने का.

इस गाँव ने 2014 में सुर्ख़ियाँ बटोरी थीं जब भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से गावों को गोद लेने का अनुरोध किया था और ख़ुद जयापुर को गोद लिया था.

Image caption जयापुर गांव

उसके बाद से तो जयापुर के दिन ही बदल गए. गाँव में सोलर प्लांट से रात को बिजली आती है, दो एटीएम चालू हैं, जल निगम के पानी की टंकी से सप्लाई जारी है, अस्पताल बन चुका है जिसमें चौबीस घंटे ऐंबुलेंस तैनात रहती है, एक कम्प्यूटर सेंटर और सिलाई केंद्र भी खुल चुका है.

दोपहर के समय गाँव के नुक्कड़ पर दिनेश पटेल से मुलाक़ात हुई जो अब मोबाइल का व्यापार करते हैं .

उन्होंने कहा, “यहाँ पर सब सुविधा हो गया है, दो-दो बैंक हैं, जल निगम लग गया है, पूरी पानी की सप्लाई है. सोलर पैनेल से रात को लाइट आती है. चौबीस घंटे बिजली हो गई है. रोड भी बन गया है.”

अगर आँकड़ों पर नज़र डालें तो जयापुर गांव के क़रीब 30 फ़ीसदी लोग खेती करते हैं और 20 फीसदी खेतीहर मज़दूर हैं. यहां 34 फ़ीसदी आबादी कामकाजी है.

उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर 53 फ़ीसदी है जबकि राष्ट्रीय साक्षरता दर 73 है, लेकिन जयापुर की साक्षरता दर 76 फ़ीसदी है और इस गांव के 100 पुरुषों की तुलना में 62 महिलाएं लिखना पढ़ना जानती हैं.

यानी आज की तारीख़ में जयापुर गाँव वाराणसी संसदीय क्षेत्र ही नहीं पूर्वांचल के सबसे विकसित गाँवों में शुमार हो सकता है.

जयापुर के लोगों को भी इस बात का बख़ूबी अहसास है कि पूरे क्षेत्र में वे भाग्यशाली थे क्योंकि बतौर सांसद नरेंद्र मोदी ने उनके गाँव को चुना.

लेकिन जयापुर के लोगों में से बहुतों को इस बात का भी एहसास है कि आस-पड़ोस के गाँवों की दशा नहीं सुधर सकी.

जयापुर गाँव के चौराहे पर ही पान-सिगरेट की दुकान चलाने वाले वंशराज गिरी से मुलाक़ात हुई जो कहते हैं भारत की उम्मीद मोदी ही हैं.

लेकिन पड़ोसी गाँवों के बारे में उन्होंने ही कहा, “हिंदुस्तान के नागरिक हैं, सबका विकास होना चाहिए. मोदी जी बोलते हैं सबका साथ सबका विकास तो हर गाँव, हर सिटी का विकास होना चाहिए. जैसे बनारस का विकास हो जाने से कुछ नहीं है, पूरे हिंदुस्तान का विकास होना चाहिए”.

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