एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटiSROभारत ऐतिहासिक क्षण के क़रीब पहुंचकर भले चूक गया लेकिन चंद्रयान-2 मिशन की सरहाना दुनि
इमेज कॉपीरइटiSRO
भारत ऐतिहासिक क्षण के क़रीब पहुंचकर भले चूक गया लेकिन चंद्रयान-2 मिशन की सरहाना दुनिया भर में हो रही है.
भारत ने चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से चंन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव के क़रीब विक्रम नाम के लैंडर को छोड़ने की कोशिश की लेकिन शनिवार सुबह इससे संपर्क टूट गया.
यह तब हुआ जब लैंडर विक्रम चन्द्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था. अभी तक इसरो ने विक्रम के ख़त्म होने की घोषणा नहीं की है. विक्रम का जीवन 14 दिन का है और इसरो को अब भी उम्मीद है कि फिर से संपर्क बहाल हो सकता है.
इसरो की इस कोशिश की तारीफ़ करते हुए अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने लिखा है, ''अंतरिक्ष काफ़ी मुश्किल है. हमलोग चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 को लैंड कराने की इसरो की कोशिश की सराहना करते हैं. इसरो की कोशिश से हम सभी प्रेरित हैं. अब इसरो को भविष्य के मौक़े की तरफ़ देखना चाहिए जिससे हम साथ में सोलर सिस्टम पर काम कर सकें.''
इमेज कॉपीराइट @NASA@NASA
इमेज कॉपीराइट @NASA@NASA
चंद्रयान-2 का सफ़र अभी ख़त्म नहीं हुआ है क्योंकि ऑर्बिटर अपना काम कर रहा है. ऑर्बिटर का एक साल का लंबा मून मिशन अभी शुरू ही हुआ है. इसने पिछले महीने ही चन्द्रमा की कक्षा में दस्तक दी थी.
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में आठ अलग-अलग वैज्ञानिक उपकरण लगे हुए हैं. ये उपग्रहों का अध्ययन कर रहे हैं. इसरो के अधिकारियों का कहना है कि इसके डेटा से शोधकर्ताओं को चन्द्रमा की सतह के मानचित्र का पता चलेगा.
नक्शे से चन्द्रमा पर पानी का अंदाज़ा लगाया जा सकेगा. एक दशक पहले चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर ने बताया था कि चंद्रमा की सतह पर दक्षिणी ध्रुव में पानी दूर-दूर तक फैला हुआ है. नासा ने चंद्रयान-1 की स्टडी की सराहना की थी.
इमेज कॉपीरइटSpaceIL/IAI
इसीलिए चंद्रयान-2 का निशाना चन्द्रमा की सतह का दक्षिणी ध्रुव था. हालांकि नासा 2024 तक चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर दो अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना पर काम कर रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि यह आंशिक असफलता है क्योंकि ऑर्बिटर अपना काम कर रहा है. एनवाईटी ने लिखा है कि संपर्क स्थापित न होने की वजह अंतरिक्षयान का क्रैश करना भी हो सकता है. डॉ सिवन ने भी कहा था कि आख़िरी के 15 मिनट दहशत के हैं.
इस साल चन्द्रमा पर अंतरिक्षयान उतारने की तीन कोशिशें हुईं. जनवरी में चीन ने सफलता पूर्वक इसे अंजाम दिया था. इसी साल अप्रैल महीने में इसराइल ने बैरेशीट नाम के एक छोटा रोबोटिक अंतरिक्षयान चन्द्रमा पर भेजा था लेकिन चंद्रयान-2 की तरह यह भी नाकाम रहा था.
इसका भी चंद्रमा की सतह के क़रीब संपर्क ख़त्म हो गया था. बाद में पता चला कि इंजन का एक कमांड ग़लत था.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''चंद्रमा की सतह पर लैन्डिंग से 15 मिनट पहले तक लैंडर विक्रम 3218 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से आ रहा था. चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर उतरते वक़्त इसके इंजन को स्लो होना था. लेकिन उतरते वक़्त विक्रम की स्पीड काफ़ी तेज़ थी और इसी वक़्त इसका ग्राउंड स्टेशन का संपर्क टूट गया.''
इमेज कॉपीरइटGetty Images
इसराइल की बैरेशीट और भारत के चंद्रयान-2 कम लागत वाले मिशन थे. बैरेशीट में 10 करोड़ डॉलर का ख़र्च आया था और चंद्रयान में 15 करोड़ डॉलर का. दोनों मिशन नासा और यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी के मिशन की तुलना में काफ़ी सस्ते थे.
नासा चन्द्रमा पर कम लागत का रोबोटिक मून मिशन 2021 में भेजने वाला है. भारत और इसराइल के कम लागत के मिशन की असफलता को लेकर कहा जा रहा है कि इसमें असफलता का ख़तरा ज़्यादा होता है. इसलिए नासा भी कम लागत वाले मिशन पर फिर से विचार कर सकता है.
इसराइल बैरेशीट अंतरिक्षयान को स्पेस आईएल और इसराइल एरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने मिलकर बनाया था. इसे चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग कराने की कोशिश की गई थी लेकिन क्रैश कर गया था. इसका भी ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया था.
तब इस नाकामी पर इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा था कि अगर आप पहली बार में सफल नहीं होते हैं तो अगली बार कोशिश करनी चाहिए. इसराइली पीएम नेतन्याहू भी इसकी लैन्डिंग देखने के लिए 11 अप्रैल की रात यहूद में स्पेसआईएल कंट्रोल सेंटर पर मौजूद थे.
तब अब तक के मून-लैन्डिंग देश रूस, अमरीका और चीन की श्रेणी में आने से इसराइल चूक गया था और इस बार भारत चूक गया. भारतीय प्रधानमंत्री ने नेतन्याहू की तर्ज़ पर ही कहा कि विज्ञान में असफलता जैसी कोई चीज़ नहीं होती है क्योंकि हर प्रयोग से कुछ न कुछ सीख मिलती है.
इमेज कॉपीरइटPTI
रविवार को इसरो ने कहा था कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर को चन्द्रमा की सतह पर विक्रम लैन्डर दिखा है लेकिन इससे कोई सिग्नल नहीं मिल रहा.
इसरो प्रमुख डॉ के सिवन ने कहा कि विक्रम से संपर्क जोड़ने की कोशिश की जा रही है. अगले 14 दिनों तक उम्मीद ज़िंदा है कि विक्रम से शायद संपर्क हो सके क्योंकि 14 दिनों तक ही विक्रम लैन्डर की जीवन है.
नेशनल जियोग्रैफ़िक ने विक्रम लैन्डर से संपर्क टूटने पर लिखा है, ''विक्रम की उड़ान काफ़ी मुश्किल थी. चन्द्रमा की सतह पर उतरते हुए गति बिल्कुल धीमी होनी चाहिए. ज़्यादातर मून मिशन चन्द्रमा की सतह के क़रीब पहुँचने के बाद ही नाकाम हुए हैं.''
नासा के अनुसार 1958 से अब तक कुल 109 मून मिशन रवाना किए गए लेकिन सफल 61 ही सफल हुए. 46 मिशन को चंद्रमा की सतह पर उतारने की कोशिश की गई लेकिन सफलता 21 में ही मिली.
इमेज कॉपीरइटiSRO
भारत चंद्रयान-3 की भी तैयारी कर रहा है. इसके साथ ही नासा और इसरो चन्द्रमा पर इंसान भेजने की योजना पर भी काम कर रहे हैं. भारत जापान से 2023 में लंबी अवधि के रोवर चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर भेजने के लिए भी बात कर रहा है. भारत और जापान का रोवर चंद्रमा पर पानी खोजेगा.
साइंस पत्रकार पल्लव बागला कहते हैं कि इसराइल के बैरेशीट और भारत के चंद्रयान-2 की तुलना इस आधार पर की जा सकती है कि दोनों चन्द्रमा की सतह पर उतरते वक़्त ही नाकाम हुए.
बागला कहते हैं, ''11 अप्रैल को पीएम नेतन्याहू भी अपने अंतरिक्ष केंद्र में मौजूद थे और वो भी सफल मिशन को देखना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. पीएम मोदी भी मौजूद थे और वो भी चंद्रयान-2 की ऐतिहासिक सफलता का गवाह बनना चाहते थे लेकिन नहीं हो पाया. डॉ के सिवन से इसराइल की नाकामी के बारे में पूछा भी गया था और उन्होंने कहा था कि इसकी स्टडी उनकी टीम ने की है.
बागला कहते हैं कि भारत और इसराइल के मिशन में ये भी फ़र्क़ है कि चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर था तब उसका संपर्क टूट गया था जबकि बैरेशीट चंद्रमा की सतह से 22 किलोमीटर दूर ही क्रैश हो गया था.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिककर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्रामऔर यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)