एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटVASILEIOU VASILEIOSलगभग एक साल पहले यूनानी पायलट वेसिलिओस अफ़गानिस्तान की राजधानी काबुल
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लगभग एक साल पहले यूनानी पायलट वेसिलिओस अफ़गानिस्तान की राजधानी काबुल के एक मंहगे होटल में रुके थे. ये वही होटल था, जहां बीते साल 20 जनवरी को तालिबान ने हमला किया था. इस हमले में 40 लोगों की मौत हुई थी.
होटल का नाम है इंटरकॉन्टिनेंटल. ये होटल विदेशी सैलानियों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है और यही कारण है कि तालिबान ने इसे निशाना बनाया.
वेसिलिओस हमले वाली रात काबुल के इसी होटल में थे और उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई.
सुनिए उनकी कहानी उन्हीं की ज़ुबानी.
मैं उस दिन शाम 6 बजे ही अपने दोस्त के साथ डिनर के लिए निकला था. शाम 7.30 बजे हम खाना खा कर लौटे थे और इसके बाद मैं अपने कमरा नंबर 522 में लौटा.
रात 8 बजकर 47 मिनट पर मैं फ़ोन पर बात कर रहा था कि तभी मैंने लॉबी में एक धमाके की आवाज़ सुनी. मैं बालकनी में निकला और देखा कि खून से लथपथ एक शख़्स ज़मीन पर गिरा हुआ है और गोलियों की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से आ रही थी.
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसोचीं जान बचाने की तरकीबें
मुझे लगा कि मैं रेस्टोरेंट में नहीं हूं और ये मेरी खुशकिस्मती है और किसी भी परिस्थिति में मुझे अपनी जान बचानी है.
मैंने तुरंत अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और कमरे की चादर, तौलिए और कपड़ों को जोड़कर एक रस्सी बनाई जिसकी मदद से मैं ज़रूरत पड़ने पर चौथी मंज़िल पर जा सकूं. एक पायलट होने के नाते मैंने 'क्राइसिस मैनेजमेंट' की ट्रेनिंग ले ली थी.
पांचवीं मंजिल से कूद कर जान बचाना मेरे लिए संभव नहीं था. मैंने ख़ुद को समझाया कि अंदर रह कर ही अपनी जान बचाई जा सकती है. मैंने कमरे की लाइट बुझा दी और पर्दे या सोफ़े के पीछे छिपने का फ़ैसला किया.
लगभग डेढ़ घंटे बाद हमलावर तीसरे और चौथी मंजिल पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने रेस्टोरेंट, लॉबी और पहली-दूसरी मंजिल पर मौजूद लगभग सभी लोगों की जान ले ली थी. मैं उनके तेज़ी से बढ़ते क़दमों को महसूस कर सकता था.
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इमेज कॉपीरइटVASILEIOS VASILEIOUImage caption हमले के बाद होटल का दृश्य
पांचवीं मंजिल पर वे सबसे पहले 521 नंबर कमरे में दाखिल हुए. ये मेरे कमरे के बिल्कुल बगल का कमरा था, लेकिन तभी अचानक लाइट चली गई.
अब वे मेरे कमरे की ओर आए. मैंने अपने दरवाजे पर गोलियों की आवाज़ सुनी. मेरे कमरे में दो पलंग थे. एक पलंग के गद्दे को मैंने दरवाजे पर लगा दिया था, लेकिन एक सिंगल बेड था जिस पर गद्दा रखा हुआ था, मैं उसी के नीचे छिप गया.
इमेज कॉपीरइटVASILEIOS VASILEIOUहंस रहे थे हमलावर
गोलियों से मेरे कमरे का लॉक तोड़ते हुए चार लोग अंदर दाखिल हुए. एक हमलावर दौड़ कर बालकनी में गया क्योंकि मेरी बालकनी का दरवाजा खुला हुआ था.
कमरे में गोलियां चल रही थीं मुझे लगा कि चंद मिनट में मैं मर जाऊंगा. उन लोगों ने मेरे कमरे का दरवाजा खोले रखा और एक हमलावर बार-बार मेरे कमरे में आता और लॉबी में चला जाता.
इसके बाद वो पांचवीं मंजिल के बाकी कमरों की ओर चले गए. मुझे लगता है कि उन्होंने सभी कमरों में मौजूद लोगों को गोलियों से भून दिया था. हमलावर ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे, मानो जैसे उनके लिए ये खेल हो.
सुबह लगभग तीन बजे उन्होंने पांचवीं मंजिल पर आग लगा दी. जब 20-25 मिनट तक कोई आवाज़ नहीं आई तो मैं बेड नीचे से बाहर निकला.
इमेज कॉपीरइटVASILEIOS VASILEIOUImage caption अफ़गानिस्तान का होटल सेना ने संभाला मोर्चा
मैंने देखा कि कमरे के दूसरे बेड को उन लोगों ने उठाकर देखा था कि कहीं कोई उसके नीचे तो नहीं छिपा है.
थोड़ी ही देर में आग का धुंआ मेरे कमरे में आने लगा. मैं बालकनी में निकला कि तभी फिर गोलियां चली. मैं फिर कमरे में भागा और वहां मौजूद फ्रिज से पानी और दूध की बोतल निकाली.
मैंने अपनी शर्ट के छोटे-छोटे टुकड़े किए और उन्हें नाक में लगाया ताकि वे फ़िल्टर का काम करें. इसके बाद मैंने बाकी कपड़े के टुकड़ों को दूध और पानी में डुबो कर मुंह में भर लिया, ताकि धुआं कम से कम जाए.
इसके बाद हमलावर मेरे कमरे में फिर आ गए और उनमें से एक वहीं बैठ गया जिस बेड के नीचे मैं छिपा हुआ था.
अगले दिन सुबह सेना के लोगों ने गोलीबारी शुरू की. सुबह 9 बजकर 25 मिनट पर मैंने कुछ गोलियों की आवाज सुनी और मुझे लगा ये सेना की जवाबी फ़ायरिंग है. 9 बजकर 30 मिनट से लेकर 11 बजकर 15 मिनट के बीच सेना ने होटल पर कई ग्रेनेड दागे.
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इमेज कॉपीरइटVASILEIOS VASILEIOUImage caption हमले के बाद होटल की लॉबी
वो कमरा नंबर 521 में फ़ायरिंग कर रहे थे और कुछ गोलियां मेरे कमरों में भी चलाई जा रही थीं. लगभग 11 बजकर 40 मिनट पर किसी ने अफ़गानी ज़ुबान में ''पुलिस-पुलिस'' की आवाज़ दी, लेकिन मैं फिर भी बाहर नहीं निकला.
साढ़े ग्यारह बजे मुझे लगा कि मेरे बगल के कमरे में कोई पुलिस कर्मी था. 10-20 सेकेंड बाद कुछ लोगों ने 'पुलिस-पुलिस' आवाज़ लगाई और मैं ये सुनकर बाहर निकला.
मुझे देखते ही उन लोगों में से एक चिल्लाया- ज़मीन पर ही रहो. वे मुझे हमलावरों में से एक समझ रहे थे. मैंने उन्हें बताया कि मैंने कैसे अपनी जान बचाई है और मैं कैप्टन हूं. वो मुझे बाहर लाए और मेरे साथ कई लोगों को काबुल स्थित ब्रितानी बेस में लाया गया.
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं बच चुका हूं मैं अपनी भावनाएं बयां नहीं कर सकता.
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