एब्स्ट्रैक्ट:Image caption परिवार के साथ किशनलाल (बाएं)"पापा चाहते थे हम उनकी तरह कभी न बनें."नाला साफ़ करने के द
Image caption परिवार के साथ किशनलाल (बाएं)
"पापा चाहते थे हम उनकी तरह कभी न बनें."
नाला साफ़ करने के दौरान किशनलाल नाम के एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. उनकी मौत से उनकी पत्नी इंदु देवी और उनके तीन बच्चे सदमे में हैं.
किशनलाल के बड़े लड़के कहते हैं कि पापा हमें खूब पढ़ने के लिए कहते थे, वो चाहते थे कि हम भाई-बहन उनके जैसा काम न करें और एक दिन बड़ा अफ़सर बनें.
36 साल के किशनलाल के साथ ये हादसा 20 जनवरी की दोपहर एक से डेढ़ बजे के बीच हुआ.
परिवार में अकेले कमाने वाले किशनलाल पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन बच्चों को खूब पढ़ाना चाहते थे.
उनका परिवार तिमारपुर की एक झुग्गी में रहता है.
बड़ी सड़क के साथ सटे नाले और उसके साथ बसी तिमारपुर की इन झुग्गियों में जब हम किशनलाल के घर जाना चाह रहे थे तो कुछ बच्चे पास आकर पूछते हैं कि आप भी वहीं जाना चाहती हैं जिनकी मौत हो गई है!
फिर वो हमें उनके घर तक ले गए, लोगों ने बताया सुबह से वहां टीवी वाले आ रहे हैं.
घर के दरवाज़े पर 'शिक्षित भारत' के साथ किशनलाल के नाम की तख्ती लगी है. लगभग 6x8 के आकार की छोटी-सी इस झुग्गी में उनकी पत्नी पड़ोस की कुछ महिलाओं के साथ बैठी थीं.
उन महिलाओं ने शिकायती लहजे में कहा, "सुबह से मीडिया वाले आ रहे हैं, कोई इस ग़रीब को न्याय भी दिलाएगा या ऐसे ही आ रहे हैं!"
कुछ पूछने से पहले ही इंदु (किशनलाल की पत्नी) के साथ बैठी महिला कहती हैं, "आप बस इस ग़रीब को एक अच्छी नौकरी ही दिलवा दो, ताकि ये अपने बच्चों को पाल सके."
किशनलाल छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे. वहां काम का साधन नहीं था इसलिए कमाने-खाने के लिए दिल्ली आए थे.
किशन की पत्नी इंदु देवी बताती हैं, "घर वालों से लड़कर हमें भी यहां साथ ले आए थे. किसी काम के लिए कभी मना नहीं करते. कभी बेलदारी, कभी मिस्त्री तो कभी सीवर या नाले की सफ़ाई के लिए चले जाते."
Image caption इंदु देवी
"कई दिनों के बाद यह नया काम मिला था, जिसके बारे में पड़ोसी दिलीप ने बताया था. 16 जनवरी से ही जाने लगे थे. पैसा भी रोज़ नहीं मिल रहा था. मालिक ने हफ़्ते में एक बार देने को कहा था."
इसी नाले की सफ़ाई के दौरान उनकी मौत हुई, उस समय उनके पास सफ़ाई के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला कोई सेफ़्टी उपकरण भी नहीं था.
इंदु बताती हैं, "मालिक तो सफ़ाई के लिए रस्सी भी नहीं देता था. उनके पास केवल एक पंजी (कूंड़ा खींचने वाला) होता था, जिसे वो (मालिक) देता था. बांस भी कई बार खुद से ही ले जाना होता था."
हादसे के दौरान किशनलाल उस नाले की सफ़ाई कर रहे थे जो बुराड़ी नाले में गिरता है.
Image caption बुराड़ी नाला
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के तहत आने वाले इस इलाके में सफ़ाई का यह काम दिल्ली का सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग करवा रहा था.
इसके लिए किशन के अलावा अन्य चार लोग अज़िज़ुल (40 साल), मनोज (35 साल), उमेश (62) साल, राजू (35 साल) भी रोज़ाना की तरह काम पर निकले थे. सभी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, जिसके लिए एक दिन के लिए 300 से 400 रुपए मिलते थे.
सड़क की एक तरफ किशन की झुग्गी है, दूसरी तरफ बुराड़ी नाला और उसमें शामिल होने वाले अन्य छोटे नाले.
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Image caption दिलीप, मनोज, राजू और उमेश
मनोज बीबीसी को बताते हैं, "किशन और चाचा (उमेश) साथ में नाले में गए थे. किशन दो कदम आगे ही थे. सफ़ाई के दौरान पानी का बहाव अचानक तेज़ हो गया. किशन अंदर गए तो नाले के मुहाने पर कूड़ा फंस गया, जिसकी वजह से वो वहीं फंस गये और उनका दम घुट गया."
बाहर मौजूद साथियों ने किशन को कुछ देर ढूंढा लेकिन वो नहीं मिले. फिर उन्होंने इसकी सूचना एक अन्य साथी दिलीप को दी. जिसने पहुंचकर एक बार फिर कोशिश की. लेकिन फिर भी किशन नहीं मिले, तो उन्होंने पुलिस को ख़बर की.
दिलीप बताते हैं कि हादसा एक से डेढ़ बजे के बीच हुआ. वो कहते हैं, "कुछ देर किशन की तलाश की गई लेकिन हम असमर्थ रहे. हमने पुलिस को बुलाया. पुलिस के आते ही इस काम के लिए हमें रखने वाले अनिल वहां से भाग गए."
Image caption जहां किशनलाल फंस गए थे वहां इशारा करते उनके साथी मनोज 'उपकरण मांगो तो भी नहीं देते'
इंस्पेक्टर पीएस यादव बताते हैं कि इस हादसे की ख़बर 3 बजे के आसपास पुलिस को मिली. वो कहते हैं, "जब हम वहां पहुंचे तो किशन नाले में फंसा हुआ था. हालात को देखते हुए हमने दिल्ली अग्निशमन सेवा और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की टीम को बुलाया."
मौके पर मौजूद मनोज बीबीसी को बताते हैं कि सफ़ाई के लिए उपकरण मांगो तो देते नहीं हैं.
वे कहते हैं, "ये काम हम हाथ से ही कर रहे थे. मालिक किसी भी तरह के उपकरण नहीं देते थे. इस बार मैंने मास्क भी मांगा था लेकिन उन्होंने कहा कि ज़्यादा नहीं है इसलिए ऐसे ही काम कर लो."
उत्तरी दिल्ली की डीसीपी नूपुर प्रसाद ने कहा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स अधिनियम की धारा 7 और 9 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है क्योंकि मौके पर मौजूद पांच सफाईकर्मियों को फेस मास्क, गैस सिलेंडर, वर्दी आदि अन्य सुरक्षा के उपकरण मुहैया नहीं कराए गए थे. इसके अलावा आगे की जांच अभी चल रही है.
उपकरण क्यों ज़रूरी
एनडीआरएफ़ की टीम को लीड करने वाले श्रीनिवासन बताते हैं कि इस घटना की जानकारी हमें चार बजे मिली लेकिन किट और टीम तैयार करने में आधा घंटा लगा.
Image caption उपकरण के नाम पर मिलते हैं बांस और पंजी
श्रीनिवासन कहते हैं, "ये टनल 40 से 45 फ़ीट लंबा था हालांकि गहराई दो से तीन फ़ीट ही थी. लेकिन कूड़े की वजह से इसमें न बैठकर जाया जा सकता था और न ही खड़े हो कर."
वे कहते हैं, "टनल से क्रॉलिंग (रैंगते) करते हुए टीम के गोताखोर अंदर गए, जहां 40 फ़ीट अंदर जाने के बाद कूड़े का ढेर मिला जिसके बाद किशन फंसा हुआ था. उन्हें बाहर निकालने में साढ़े चार घंटे लग गए."
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वे बताते हैं कि सीवर या नाले में ज़हरीली गैस होती है जिसकी वजह से जान को ख़तरा होता है. इसके लिए फेस मास्क, वर्दी, ऑक्सीजन गैस सिलेंडर, एक बार होता है जो गैस की मात्रा बताता है जैसे उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है. गैस सिलेंडर केवल 20 मिनट तक ही चलता है इसलिए इस तय सीमा में अंदर से बाहर आना होता है. रेस्क्यू टीम में छह डीप डाइवर थे जो एक के बाद एक करके अंदर गए थे.
'सरकार कुछ करती क्यों नहीं'
सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के बेजवाड़ा विल्सन बताते हैं कि 2013 में क़ानून बना दिया गया था कि मैनुअली सीवर साफ़ करना गैरक़ानूनी है, फिर भी ये काम किया जा रहा है.
वे कहते हैं, "सफ़ाई के दौरान किशन और उनके साथियों के पास उपकरण के नाम पर कुछ नहीं था. अगर सरकार के पास सुविधा नहीं है तो ये बंद कर देना चाहिए. हालांकि अगर उपकरण है तो भी नाले या सीवर में अंदर जाकर सफ़ाई करना गैरक़ानूनी है.''
विल्सन आगे जोड़ते हैं, "सरकार इन लोगों पर ध्यान नहीं देती क्योंकि उन्हें कोई सरकारी फ़ायदा नहीं होता. जबकि उन्हें इसे बंद करवाने के लिए कड़े कदम उठाना चाहिए, उनके पुर्नवास के लिए काम करना चाहिए ये एक दंडनीय अपराध है. लेकिन वे सब एक दूसरे पर डालने की कोशिश करते हैं और इस मुद्दे से पीछा छुड़ा लेते हैं."
वे जोर देते हुए कहते हैं कि अगर किसी तरह की इमरजेंसी है तो ये काम एनडीआरएफ का है वो भी पूरी तैयारी के साथ जाती है और इमरजेंसी में ही जाती है. ग़रीबी और मजबूरी के कारण सीवर साफ़ करने के दौरान अपनी जान जोखिम में डालने वालों के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी सरकार की है.
किसकी ज़िम्मेदारी?
दिल्ली के सीवर और नालों के निर्माण कार्य दिल्ली जल बोर्ड के अंतर्गत आता है लेकिन जब उनसे इस मामले में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस बारे में ज़्यादा कुछ पता ही नहीं था.
नाम न बताने की शर्त पर दिल्ली जल बोर्ड की एक अधिकारी बताती हैं कि ये काम हम नहीं करवा रहे थे. यहां फ्लड डिपार्टमेंट का काम चल रहा था, जिसके बारे में हमें कोई जानकारी भी नहीं थी.
Image caption बुराड़ी नाले में शामिल होते अन्य नाले
इलाके के मेयर आदेश गुप्ता कहते हैं, "इलाका हमारे अंतर्गत है लेकिन मामला दिल्ली सरकार का है, जहां फ्लड कंट्रोल का काम हो रहा था."
इसी बारे में बीबीसी ने दिल्ली सरकार के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग से भी बात की, जिन्होंने माना कि ये काम उन्हीं का हो रहा था.
इरिगेशन एंड फ्लड कंट्रोल डिपार्टमेंट के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर नरेंद्र भागल बताते हैं कि जो काम किया गया है वो ड्यूटी में आता ही नहीं है.
वो कहते हैं, "हमने जो कॉन्ट्रैक्ट दिया था वो नाले को बाहर से साफ़ करने के लिए कहा गया था. नाले में अंदर जाना नहीं था. बाहर से ही नाले की पॉलीथीन और अन्य कचरे को हटाना था."
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मज़दूर सीवर में उतरते गए और मरते गए...
"हमारा काम खुले नालों का कचरा बाहर से ही साफ़ करना है लेकिन ये उस ड्यूटी से अलग काम किया गया है और ये सब रविवार को हुआ जिस दिन हमारा स्टाफ भी मौजूद नहीं था. इसके लिए अब पूछताछ की जा रही है. क्योंकि हमारे ड्यूटी में व्यक्ति को पानी में जाने की इज़ाज़त ही नहीं है, जितना भी काम होता है वो नाले के बाहर किनारे पर रहकर ही करना होता है."
दिल्ली में पहले हुई मौतों का क्या हुआ?
पिछले साल सीवर और सेप्टिक टैंक साफ़ करने के दौरान कई मौत हुई, जिनमें मोती नगर इलाके में एक सोसायटी में सीवर टैंक साफ़ करने के लिए छह मजदूरों में से पांच की मौत हो गई थी.
बीबीसी ने पुलिस से इस केस के बारे में बात की. मोती नगर के एसएचओ संदीप कुमार बताते हैं कि इस केस में चार्जशीट दर्ज है और हाल ही में यहां ज्वाइन किया है इसलिए उन्हें इस केस के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता.
बीबीसी ने मरने वाले पांच मजदूरों में से एक के परिवार से मामले की जानकारी की.
मृत विशाल की बहन सत्या बताती हैं कि इस मामले में पांच अभियुक्तों की गिरफ़्तारी हो गई थी लेकिन कुछ समय बाद तीन को रिहा कर दिया गया और अब केवल दो ही गिरफ़्तार हैं.
सरकार से मदद मिलने की बात पर सत्या बताती हैं कि दिल्ली सरकार ने शुरू में 10 लाख देने की घोषणा की थी, जिसकी रकम सभी मरने वालों के परिवार के बैंक में आ चुकी है.
वहीं पश्चिमी डाबरी इलाके में 37 साल के अनिल की सीवर में सफ़ाई के दौरान मौत हो गई थी. इसमें आगे की कार्यवाही के लिए पुलिस से संपर्क किया गया.
डाबरी पुलिस स्टेशन के एसएचओ विजय पाल ने बताया कि इस केस में सतबीर कलां व्यक्ति की गिरफ़्तारी हो रखी है, जिसने अनिल से सफ़ाई का काम करवाया था और आगे इंवेस्टिगेशन जारी है. अनिल के परिवार से हमारा संपर्क नहीं हो पाया.
Image caption किशनलाल
ग़ैर-सरकारी संस्था प्रैक्सिस ने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि हर साल दिल्ली में करीब 100 सीवर कर्मचारियों की काम के दौरान ज़हरीली गैसों की वजह से मौत हो जाती है.
2017 में जुलाई-अगस्त के मात्र 35 दिनों के दौरान 10 सीवर कर्मचारियों की मौत हो गई थी.
सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक, उसने 1993 से अब तक पूरे भारत में हुईं करीब 1,500 मौतों के दस्तावेज़ जुटाए हैं लेकिन असल संख्या कहीं ज़्यादा बताई जाती है.
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