एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesजम्मू-कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर गुरुवार को हुए हमल
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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर गुरुवार को हुए हमले में 34 जवान मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं.
पुलवामा ज़िले के लेथपोरा में आईईडी धमाके के ज़रिये 40 से ज़्याद जवानों से भरी एक बस को निशाना बनाया गया.
कश्मीर में रक्षा विशेषज्ञ सुरक्षा बलों पर हुए इस हमले को भारत सरकार की पूरी नाकामी बता रहे हैं.
पूर्व पुलिस उप-महानिदेशक और लेखक अली मोहम्मद वटाली ने कहा, इस तरह के हमलों से यह संदेश निकलकर आता है कि चरमपंथियों को मारने की नीति नाकाम रही है. इस तरह का हमला समस्या को जटिल करता है."
मोहम्मद वटाली ने कहा, भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कई बार कहा कि कुछ महीनों में कश्मीर में चरमपंथी ख़त्म हो जाएंगे. मगर उनकी बात सही साबित नहीं हुई. कश्मीर में स्थिति ख़राब होती जा रही है. सेना को इस्तेमाल करने का विकल्प इसे संभालने में नाकाम रहा है. कश्मीर में हालात सामान्य नहीं कहे जा सकते."
मोहम्मद वटाली से जब पूछा गया कि पिछले कुछ सालों में तो चरमपंथी आत्मघाती या फ़िदायीन हमले नहीं करते थे, तो उन्होंने कहा, यही तो मैं बता रहा हूं. एक समय ऐसा था जब इस तरह के हमले होना आम बात हो गई थी. मगर हम एक बार फिर उसी दौर में प्रवेश कर रहे हैं जब ऐसे हमले हो रहे हैं."
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इमेज कॉपीरइटReuters'ये एक लंबी लड़ाई'
पूर्व पुलिस महानिदेशक एम.एम. खजूरिया कहते हैं कि कश्मीर में जो चल रहा है, वो ऐसी लड़ाई नहीं है जो एक-दो महीनों में ख़त्म हो जाए. वह मानते हैं कि ये एक लंबा संघर्ष है.
खजूरिया कहते हैं, ये लड़ाई महीनों में ख़त्म नहीं हो सकती. जबसे इसमें वहाबी (मुस्लिमों का एक वर्ग जिनकी संख्या सऊदी अरब में ज़्यादा है) फ़ैक्टर जुड़ा है, नया खेल शुरू हो गया है. आज जो हुआ, वो एक बड़ा हमला था. दूसरी बड़ी बात ये है कि इस हमले को, जैसा कि रिपोर्टें बता रही हैं, एक स्थानीय लड़के ने अंजाम दिया है. स्थानीय लड़के वहाबी और आईएसआईएस की विचारधारा से जुड़ रहे हैं. ये स्थिति चिंताजनक है. भारत सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और समाधान खोजना चाहिए."
उन्होंने आगे कहा, भारत सरकार को कश्मीर में लोगों से बात करनी चाहिए. उन लोगों से संपर्क करना चाहिए जो नाराज़ हैं. और ये भी महत्वपूर्ण है कि हम उन लोगों के बारे में सोचें जो कि कश्मीर में आतंकवाद के संपर्क में नहीं आए हैं. इस मामले में राजनीति करना हमारे देश के लिए ठीक नहीं है. हमें लोगों से संवाद करना होगा."
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'पहली बार ऐसा हमला'
पूर्व डीजीपी और वर्तमान में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एसपी वैद गुरुवार को हुए हमले को बेहद घातक बताते हैं और कहते हैं कि ये ख़तरनाक घटना है.
वह कहते हैं, मुझे लगता है कि मैंने पहली बार इस तरह का आत्मघाती हमला देखा है जिसमें किसी काफ़िले को इस तरीके से निशाना बनाया गया है. हमलावर स्थानीय लड़का था. ये बहुत ख़तरनाक संकेत हैं. इसकी जांच होनी चाहिए कि ये क्यों और कैसे हुआ. यह जैश, लश्कर और उनकी जैसी सोच रखने वाले संगठनों की पैन-इस्लामिक विचारधारा है जिसने मासूम कश्मीरी को आत्मघाती हमलावर बना दिया."
जब उनसे पूछा गया कि चुनाव नज़दीक हैं, ऐसे में क्या इस तरह के हमलों से कश्मीर में तैनात सैनिकों के मनोबल पर असर पड़ेगा, तो वैद ने इसका जवाब न में दिया.
उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा. पहले भी चरमपंथियों ने हमले किए हैं और यह सिलसिला जारी है."
वैद ने कहा कि वह नहीं बता सकते कि यह सुरक्षा में चूक का मामला है या नहीं, मगर जांच होनी चाहिए कि यह घटना हुई कैसे. वह कहते हैं, इसकी जांच ज़रूर होनी चाहिए और गहन पड़ताल के बाद चीज़ें साफ़ हो जाएंगी."
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'चरमपंथ को मिलेगाबढ़ावा'
90 के दशक में जब कश्मीर में चरमपंथ का उदय हुआ था, चरमपंथी इस तरह के हमले करते रहे थे. 2005 तक यह सिलसिला चला. गुरुवार को हुए चरमपंथी हमले ने कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
पिछले साल सुरक्षा बलों ने कश्मीर में दावा किया था कि उन्होंने 250 से अधिक चरमपंथियों को मारा है, जिनमें शीर्ष नेता भी शामिल थे. पिछले कुछ सालों से दक्षिण कश्मीर को चरमपंथ का नया अड्डा माना जा रहा है.
2016 में हिज़्ब कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद 2018 तक दक्षिण कश्मीर में स्थानीय लड़के बड़ी संख्या में चरमपंथी संगठनों में भर्ती हुए हैं.
पत्रकार और टिप्पणीकार हारून रेशी कहते हैं कि गुरुवार का हमला आगे चलकर कश्मीर में चरमपंथ को बढ़ावा देगा.
उन्होंने कहा, ''चरमपंथियों का आज का हमला उनके लिए प्रोत्साहन होगा क्योंकि पिछले दो सालों में यहां सेना मज़बूत बनकर उभरी है. सुरक्षा एजेंसियों ने कश्मीर में करीब 500 चरमपंथियों को मारा है.''
हारून रेशी ने कहा, ''हाल ही में बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव ने कहा था कि सुरक्षा बल कश्मीर में चरमपंथ ख़त्म करने में सफल हुए हैं. लेकिन ये हमला दिखाता है कि कश्मीर में भले ही कम चरमपंथी सक्रिय हों लेकिन वो घातक साबित हो सकते हैं. जैसा कि आज का हमला एक 21 साल के नौजवान ने किया था और आप देख सकते हैं कि वो कितना ख़तरनाक साबित हुआ है. ये हमला एक बड़ा संदेश है.''