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लोकसभा चुनाव 2019: पुलवामा और बालाकोट के बाद कितनी बदली विपक्ष की सियासत

WikiFX
| 2019-03-07 16:03

एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesइसी साल फरवरी में जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए चरमपंथी आत्मघाती हमले और उ

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इसी साल फरवरी में जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए चरमपंथी आत्मघाती हमले और उसके बाद पाकिस्तान में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई की ख़बर के बाद भारत में राजनीतिक माहौल बदला है. इस बदले हुए राजनीतिक माहौल में विपक्ष की रणनीति और गठबंधन के समीकरण भी बदल रहे हैं.

लोकसभा सीटों के लिहाज़ से सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और लोकदल के गठबंधन ने कांग्रेस पार्टी के लिए दो सीटें छोड़ी हैं- रायबरेली और अमेठी.

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव कह चुके हैं कि इन सीटों को छोड़ने का मतलब यही है कि कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल है लेकिन कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है.

इन सबके बीच क्या बदले राजनीतिक माहौल में गठबंधन के गणित में कोई बदलाव हो सकता है?

बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया कहते हैं, जहां हमारी ताक़त है अगर कांग्रेस हमें वहां सीटें देती है तो हम कांग्रेस को बदले में सीटें क्यों नहीं देंगे? बिल्कुल देंगे."

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भदौरिया का मतलब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से है जहां बहुजन समाज पार्टी उम्मीदवार तो उतारती रही है लेकिन उसे बड़ी जीत नहीं मिली है.

वो कहते हैं, अभी विधानसभा चुनावों में हमें मध्य प्रदेश में सात प्रतिशत वोट मिला है, छह विधायक हमारे राजस्थान में जीते हैं. छत्तीसगढ़ में भी हमारा प्रतिशत ठीक-ठाक है. अगर हमारे इस जनमत का सम्मान गठबंधन में किया जाता है तो बात आगे ज़रूर बढ़ सकती है. अगर सम्मानजनक समझौता करेंगे तो समझौता क्यों नहीं होगा?"

भदौरिया ये तो स्वीकार करते हैं कि पुलवामा हमले के बाद देश का राजनीतिक माहौल बदला है लेकिन वो ये नहीं मानते कि इससे यूपी के गठबंधन पर कुछ असर होगा. वो कहते हैं, अगर कोई आना चाहता है तो अखिलेश जी और मायावती जी से बात करे, स्वागत है. बात करने से ही बात होगी."

कांग्रेस का रुख़

वहीं कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला इस सवाल पर कहते हैं, सपा हो या बसपा, राजनीतिक विचारों पर हमारी भिन्नता हो सकती है, लेकिन देशहित में अनेक मुद्दों पर हमारी समानता भी है. सपा और बसपा ने कांग्रेस का इंतज़ार किए बिना सभी सीटों का निर्णय अपने आप कर लिया, हमसे तो बात ही नहीं की."

आज भी अगर सपा और बसपा खुले मन से चाहेंगे तो कांग्रेस पार्टी अवश्य विचार करेगी क्योंकि हम चाहते हैं कि हम सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाकर देश को मज़बूत करें."

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रणदीप सुरजेवाला कहते हैं, हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं है, न नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ न किसी और के ख़िलाफ़. हमारी लड़ाई उस विध्वंसकारी, नफ़रत से भरी हुई और बांटने वाली विचारधारा के ख़िलाफ़ है जिसका प्रतिनिधित्व नरेंद्र मोदी करते हैं."

सुरजेवाला ये स्वीकार करते हैं कि बीते कुछ दिनों में देश का राजनीतिक माहौल बदला है. भाजपा पर निशाना साधते हुए वो कहते हैं, देश का राजनीतिक माहौल दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से सेना की शहादत के पीछे छुपे प्रधानमंत्री की राजनीति से प्रभावित हो रहा है."

सुरजेवाला कहते हैं कि उनकी पार्टी देश में बेरोज़गारी, रोज़ी-रोटी, किसान-मज़दूरों, छोटे उद्यमियों और दुकानदारों के मुद्दा उठाकर इस राजनीति का जबाव देगी.

वो कहते हैं, इस देश में प्रजातंत्र, संवैधानिक परिपाटी और लोगों की रोजी-रोटी और जीवन को बचाने के लिए हम सबको एकजुट होकर हम सबको एक अहंकारी शासक और अहंकारी सरकार से मुक़ाबला करने की आवश्यकता है."

कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता भले ही गठबंधन में गुंज़ाइश के संकेत दे रहो हों लेकिन समाजवादी पार्टी का स्पष्ट कहना है कि जो तय हो गया है वही अंतिम है.

इमेज कॉपीरइटAFPसमझदार जनता पर सबका भरोसा

पार्टी के वरिष्ठ नेता और अखिलेश यादव के सलाहकार राजेंद्र चौधरी कहते हैं, पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव स्पष्ट कर चुके हैं कि हमने दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ दी हैं और इसी आधार पर हम मानते हैं कि कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल है. सपा, बसपा और लोकदल का गठबंधन ही उत्तर प्रदेश में विपक्ष की मुख्यधारा है और इसी के साथ वो मतदाता भी हैं जो सत्ता के ख़िलाफ़ हैं या सत्ता के सताए हुए हैं."

यादव कहते हैं, गठबंधन में आगे किसी तरह के बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है. न ही गठबंधन को लेकर कोई नई बातचीत चल रही है."

राजेंद्र यादव इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि पुलवामा हमले और पाकिस्तान में भारतीय वायुसेना की कार्रवाई का चुनावों पर कोई बड़ा असर होगा.

वो कहते हैं, जनता सच्चाई जानती है. विपक्ष ने शहीदों के बलिदान को सराहा है. कोई एक राजनीतिक दल सेना का शौर्य लेने का दावा नहीं कर सकता है. जनता समझदार है और वो चुनावों में सेना के नाम के इस्तेमाल को भी समझती है."

इमेज कॉपीरइटGetty Imagesक्या कांग्रेस कन्फ्यूज़्ड है?

उत्तर प्रदेश में जब महागठबंधन की बात शुरू हुई थी तब माना गया था कि कांग्रेस, सपा और बसपा साथ आएंगे, लेकिन अब कांग्रेस के लिए दो सीटें तो छोड़ी गईं हैं मगर उसे बड़े गठबंधन में शामिल नहीं किया गया है.

इसकी वजह बताते हुए सुधींद्र भदौरिया कहते हैं, कांग्रेस इस समय अलग मोड में हैं. कांग्रेस का ज़ोर इस समय अपनी पार्टी को बढ़ाने पर है न की मोदी को हराने पर जबकि ये अपनी पार्टी बढ़ाने का नहीं बल्कि मोदी को हराने का समय है."

जब ये सवाल रणदीप सुरजेवाला से किया गया तो उन्होंने कहा, विनम्रता का दूसरा सार ही कांग्रेस है, राहुल गांधी झुककर आगे बढ़ना जानते हैं. दूसरे दल हमें लेकर ग़लतफ़हमी में हो सकते हैं, हममें किसी तरह का अक्खड़पन नहीं है."

वो कहते हैं, हम इस बात से सहमत नहीं है कि गठबंधन हमारी वजह से नहीं हो रहा है. महाराष्ट्र में हमारा गठबंधन हो गया है. कर्नाटक, बिहार, और केरल में भी हमारा गठबंधन हो गया है. यूपी में दो छोटी पार्टियों से भी हमारा गठबंधन हो गया है. कांग्रेस पार्टी ने उदार दिल से लेन-देन के आधार पर गठबंधन किया है. हम बाकी जगह भी, जहां-जहां संभव होगा वहां अन्य दलों को साथ लेकर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं."

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सुरजेवाला कहते हैं, यूपी में सपा और बसपा अपने आप को बड़ी पार्टियां मानती हैं, अगर वो बड़ी हैं तो पहल भी उन्हीं को करनी पड़ेगी. अगर उनकी ओर से पहल होती है तो हम बात करने को तैयार हैं. प्रियंका गांधी कांग्रेस पार्टी को जड़ों तक मज़बूत करने का प्रयास कर रही हैं और बहुत से समूह कांग्रेस के साथ जुड़ रहे हैं. फिर भी सम्मानजनक अगर कोई निर्णय होगा तो कांग्रेस अपने दरवाज़े बंद नहीं करेगी."

यूपी में भले ही कांग्रेस को अभी महागठबंधन में जगह नहीं मिल पाई है लेकिन बिहार में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन तय माना जा रहा है. हालांकि दोनों पार्टियों में सीट बंटवारे को लेकर अभी सहमति नहीं बन पाई है. इस बारे में अगले चार-पाच दिनों में फ़ैसला हो सकता है.

बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव कहते हैं, बिहार में विपक्षी गठबंधन मज़बूत है और लगभग सभी चीज़ें तय हो चुकी हैं. अगले कुछ दिनों में कौन कहां से लड़ेगा ये स्थिति भी स्पष्ट हो जाएगी."

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संजय यादव कहते हैं, भारतीय जनता पार्टी ने भी 2014 का चुनाव गठबंधन के साथ मिलकर ही लड़ा था और वो अब भी छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ जोड़ रहे हैं. अगर देश में कहीं भी विपक्ष का गठबंधन होता है तो ये बहुत अच्छी बात है. अगर यूपी में महागठबंधन और मज़बूत होता है तो ये और अच्छी बात होगी."

पुलवामा हमले के बाद से बदले राजनीतिक माहौल पर संजय यादव कहते हैं, पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सभी विपक्षी दल सरकार के साथ हैं. पहले भी जब भी ऐसे हमले हुए हैं, देश एकजुट रहा है. लेकिन ऐसे हमले की आड़ में किसी प्रकार की राजनीति नहीं होनी चाहिए."

विपक्ष इस पर राजनीति नहीं कर रहा है. लोग सब समझ रहे हैं. बिहार में जनता राजनीतिक और सामाजिक रूप से जागरूक है और बख़ूबी समझती है कि भारतीय सेना सुरक्षा करने में बहुत सक्षम है और देश की आज़ादी के बाद से देश की रक्षा करती रही है."

वहीं दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बात चली थी लेकिन अब कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि आम आदमी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा.

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इस बारे में पूछे जाने पर सुरजेवाला कहते हैं, कांग्रेस की दिल्ली इकाई ने गठबंधन न करने का फ़ैसला किया है और केंद्रीय नेतृत्व ने इस का सम्मान किया है."

जब उनसे पूछा गया कि क्या दिल्ली में आप के साथ किसी तरह के गठबंधन की कोई बात चल रही है तो उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई बात नहीं हो रही है.

'गठबंधनन हुआ तो भाजपा को पहुंचेगा फ़ायदा'

वहीं आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह कहते हैं कि दिल्ली में गठबंधन को लेकर हमारी ओर से ज़रूर कहा गया लेकिन दोनों दलों के बीच औपचारिक बातचीत कभी हुई ही नहीं.

वो कहते हैं, समझना ये होगा कि गठबंधन होना क्यों ज़रूरी है. इस समय देश में ऐसी सरकार चल रही है जो इस देश के संविधान, लोकतंत्र और संघीय ढांचे के लिए गंभीर ख़तरा बन गई है. गोवा, अरुणाचल, कर्नाटक, दिल्ली, बंगाल हर जगह राज्यपाल के डंडे का इस्तेमाल सरकारों के ख़िलाफ़ किया जा रहा है."

एक ऐसी सरकार को हटाने के लिए जो गाय के नाम पर इंसान का क़त्ल होने पर मौन रहती है, जिसके मंत्री बलात्कारियों के समर्थन में रैली करते हैं, इसे रोकने के लिए सभी दलों को साथ आना चाहिए."

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संजय सिंह कहते हैं, कांग्रेस को ये बात क्यों नहीं समझ आ रही है, इस पर मुझे आश्चर्य है. कांग्रेस यूपी, बंगाल और दिल्ली में अकेले चुनाव लड़कर भाजपा को फ़ायदा पहुंचाने के अलावा कुछ नहीं है."

संजय सिंह इस बात को भी स्वीकार नहीं करते कि दिल्ली में गठबंधन कांग्रेस की स्थानीय ईकाई की वजह से नहीं हो पाया है. वो कहते हैं, इसी कांग्रेस में इन्हीं शीला दीक्षित को यूपी चुनावों का चेहरा घोषित किया गया था. लेकिन जब समाजवादी पार्टी से गठबंधन हुआ तो किसी ने उनकी ओर पलटकर भी नहीं देखा."

संजय सिंह कहते हैं कि दिल्ली में गठबंधन को लेकर कांग्रेस के साथ कभी औपचारिक बात हुई ही नहीं और जो भी निर्णय लिया कांग्रेस ने इकतरफ़ा लिया. वो कहते हैं कि सीटें के बंटवारे तक बात पहुंची ही नहीं थी.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते रहे हैं कि वो कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते थे और कांग्रेस गठबंधन न करके दिल्ली में भाजपा को फ़ायदा पहुंचा रही है. संजय सिंह भी यही कहते हैं कि गठबंधन न करने का कांग्रेस का फ़ैसला इकतरफ़ा है.

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संजय सिंह ये भी कहते हैं कि पुलवामा हमले के बाद सेना का इस्तेमाल राजनीति में हो रहा है.

वो कहते हैं, पूरे देश में युद्धोन्माद पैदा कर इसका राजनीतिक फ़ायदा लेने की कोशिश की गई है लेकिन जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ेगा ये सब मुद्दे पीछे हो जाएंगे और एक बार फिर बेरोज़गारी का मुद्दा, नोटबंदी का मुद्दा, जीएसटी और महिला सुरक्षा का मुद्दा राजनीति के केंद्र में आ जाएगा."

पुलवामा हमले और बालाटोक एयरस्ट्राइक के बाद भले ही गठबंधन को नए सिरे से आगे बढ़ाने की बात बहुत आगे न बढ़ पाए,लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विपक्षी दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक जयशंकर गुप्त कहते हैं, जो माहौल बनाने की कोशिश की गई है उसका जबाव देने के लिए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के पास कोई ज़मीनी तंत्र नहीं है."

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जयशंकर गुप्त कहते हैं, बालाकोट को लेकर जो दावे किए गए हैं, बहुत मुमकिन है कि अगले कुछ दिनों में इसका सच सामने आए. अगर ऐसा हो तो शायद लोगों की राय इसे लेकर बदले."

गुप्त मानते हैं कि कांग्रेस विपक्ष का एक बड़ा महागठबंधन बनाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह निभाने में नाकाम रही है.

वो कहते हैं, कांग्रेस कई जगहों पर तय नहीं कर पा रही है कि उसे नरेंद्र मोदी और बीजेपी से लड़ना है या क्षेत्रीय पार्टियों से लड़ना है. जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल हैं, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हैं, यूपी में अखिलेश और मायावती हैं. इस असमंजस का शिकार होने की वजह से ही कांग्रेस का गठबंधन अभी परवान नहीं चढ़ पा रहा है."

वो कहते हैं, कांग्रेस के ऊपर ये दायित्व भी था और चुनौती भी थी कि वो बीजेपी के ख़िलाफ़ एक मज़बूत गठबंधन खड़ा करे. लेकिन कम से कम यूपी और दिल्ली में तो कांग्रेस बीजेपी को मज़बूत चुनौती देती हुई नज़र नहीं आती है."

गुप्त कहते हैं कि बीजेपी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस रणनीतिक गठबंधन कर सकती है.

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वो कहते हैं, जिस तरह से अमेठी और रायबरेली की सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी गई हैं उसी तरह से कांग्रेस भी जहां सपा-बसपा मज़बूत हैं वो सीटें छोड़कर विपक्ष की लड़ाई को मज़बूत कर सकती है. लेकिन जहां भी त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा वहां विपक्ष के ही वोट बटेंगे. ख़ासकर यूपी में 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सिर्फ़ दो सीटों पर जीती है और छह सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे हैं. इन छह सीटों में दो ही सीटें ऐसी थीं जहां हार का अंतर 50 हज़ार से एक लाख वोटों के बीच था. बाक़ी चार सीटें पर ये ढाई लाख से लेकर छह लाख तक था. कांग्रेस को सोचना होगा कि क्या वो इस फ़ासले को पाट पाएगी."

गुप्त कहते हैं, जब कांग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अन्य दलों को कोई सीट नहीं दे रही है तो जो दल यूपी में मज़बूत हैं वो उसे जगह कैसे दे सकते हैं? ताना-बाना तो सभी जगहों पर बनाना होगा."

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