एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesभारतीय निर्वाचन आयोग ने दस मार्च को आगामी लोकसभा चुनाव का कार्यक्रम जारी कर
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भारतीय निर्वाचन आयोग ने दस मार्च को आगामी लोकसभा चुनाव का कार्यक्रम जारी कर दिया है.
ये चुनाव 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई के बीच सात चरणों में, भारत प्रशासित कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली 543 लोकसभा सीटों के लिए संपन्न होगा.
लेकिन भारत प्रशासित कश्मीर के तमाम राजनेताओं ने इस चुनाव कार्यक्रम पर विरोध दर्ज कराया है.
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चुनाव आयोग एक ओर जहां उत्तराखंड से लेकर पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सिर्फ़ एक चरण में चुनाव संपन्न कराने जा रहा है. वहीं, कश्मीर की चरमपंथ प्रभावित लोकसभा सीट अनंतनाग में तीन चरणों में चुनाव कराने का फ़ैसला लिया गया है.
लेकिन साल 2015 से उप-चुनाव का इंतज़ार कर रही अनंतनाग लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौक़ा है जब यहां तीन चरणों में चुनाव होंगे.
यही नहीं, चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं कराने का फ़ैसला लिया है.
ऐसे में जम्मू-कश्मीर के स्थानीय राजनीतिक दल चुनाव आयोग के इस क़दम का विरोध कर रहे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद अपने ट्विटर अकाउंट पर इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ़ संसदीय चुनाव कराने का फ़ैसला भारत सरकार की बदनियती को स्पष्ट करता है.
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हालांकि, निर्वाचन आयोग का तर्क है कि विधानसभा चुनावों को न कराने का फ़ैसला सुरक्षा व्यवस्था में कमी की वजह से लिया गया है.
लेकिन सवाल ये है कि अनंतनाग जैसी सीट पर तीन चरणों में चुनाव कराने से सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को क्या हासिल होने की उम्मीद है.
बीबीसी ने यही समझने के लिए जम्मू-कश्मीर की राजनीति को क़रीब से समझने वाली वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन और बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर से बात की.
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अनुराधा भसीन बताती हैं, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था काफ़ी ख़राब है. लेकिन चुनावी अंक गणित के लिहाज़ से ये लोकसभा चुनाव काफ़ी अहम है क्योंकि केंद्र में दोबारा सरकार बनाने के लिहाज़ से बीजेपी के लिए एक-एक लोकसभा सीट अहम है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर की छह सीटें बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं. जम्मू की सीट पर उनकी जीत की संभावनाएं हैं लेकिन बीजेपी कश्मीर में भी अपना झंडा गाड़ना चाहती है."
अनंतनाग की सीट की बात करें तो ये आशंका जताई जा रही है कि आगामी चुनाव में यहां पर मतदान काफ़ी कम होगा. ऐसे में बीजेपी की कोशिश ये होगी कि इस सीट पर किसी तरह अपने किसी नुमाइंदे या किसी अन्य उम्मीदवार को समर्थन देकर ये सीट जीत ली जाए. और इस कोशिश में तीन चरणों में होने वाला चुनाव इनके लिए मददगार साबित हो सकता है."
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesतीन चरणों में चुनाव से फ़ायदा किसे?
चुनाव आयोग के कार्यक्रम के मुताबिक़, अनंतनाग में 23 अप्रैल, कुलगाम में 29 अप्रैल और शोपियां-पुलवामा में 6 मई को चुनाव होंगे.
कई चरणों में चुनाव होने की स्थिति में चुनावी दलों को अपनी प्रचार रणनीति में ज़रूरत के हिसाब से बदलाव करने में मदद मिलती है. पर सवाल ये उठता है कि इससे सीधे तौर पर किसे फ़ायदा हो सकता है.
अनुराधा भसीन मानती हैं, फ़िलहाल ये कहना मुश्किल है. लेकिन जब ये चुनाव कार्यक्रम बनाया गया है तो काफ़ी सोच समझकर बनाया गया होगा. अनंतनाग यानी दक्षिण कश्मीर में पूरा नियंत्रण सुरक्षाबलों के हाथों में है. 90 के दशक में जो चुनाव हुए उनमें सुरक्षाबलों का पूरी तरह से इस्तेमाल किया गया था. साल 2002 के बाद स्थिति में थोड़ा बदलाव आया और निष्पक्ष चुनाव होने लगे. लोगों के साथ डायलॉग करने की कोशिश शुरू हुई. लेकिन इससे पहले जो चुनाव हुए उनमें लोगों को घरों से बाहर निकालकर बूथ तक ले जाने में सुरक्षाबलों का काफ़ी इस्तेमाल हुआ. यहां तक कि सुरक्षाबल लोगों को ये भी बताते थे कि वोट किसे देना है."
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चुनाव आयोग का तर्क ये है कि इस क्षेत्र में चरमपंथ का प्रभाव ज़्यादा है. ऐसे में चुनाव कराना काफ़ी मुश्किल है.
बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर बताते हैं, मैंने स्थानीय प्रशासन से बात की तो उनका कहना है कि क़ानून व्यवस्था काफ़ी ख़राब है. ऐसे में चुनाव आयोग की बात में दम है."
कश्मीर में अनंतनाग लोकसभा सीट वह इलाक़ा है जिसे कश्मीरी चरमपंथ का गढ़ माना जाता है. बुरहान वानी से लेकर पुलवामा में सीआरपीएफ़ की बस पर आत्मघाती हमला करने वाला आदिल अहमद डार इसी क्षेत्र के स्थानीय निवासी थे.
ऐसे में चुनाव आयोग के दावे में दम नज़र आता है.
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लेकिन अगर मसला सुरक्षाबलों की उपलब्धता का है जिसका ज़िक्र मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी किया तो वह क्या वजह थी जिसके चलते इस सीट पर बुरहान वानी एनकाउंटर से पहले चुनाव नहीं कराए गए.
क्योंकि इस एनकाउंटर से पहले दक्षिणी कश्मीर अपेक्षाकृत शांति के दौर से गुज़र रहा था.
भसीन बीजेपी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को इसके लिए ज़िम्मेदार मानती हैं.
वह बताती हैं, बीजेपी के साथ मिलकर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने वाली महबूबा मुफ़्ती ने 2014 में इसी सीट से 65 हज़ार मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी. यहां तक कि पीडीपी ने अपने चुनाव प्रचार में ये कहा था अगर आम लोग उन्हें मज़बूत करें तभी वह हिंदुत्व को कश्मीर से बाहर रख पाएंगी."
इसके बाद उन्होंने उसी हिंदुत्व का दामन थाम लिया जिसका विरोध करके उन्होंने मत हासिल किए थे. इसके बाद स्थानीय स्तर पर मुफ़्ती और पीडीपी का काफ़ी विरोध हुआ. मुफ़्ती के चुनाव में उनका झंडा उठाने वाले कई युवाओं ने बंदूक थाम ली. ऐसे में दो राय नहीं है कि स्थानीय स्तर पर पीडीपी का नुकसान हुआ है."
वहीं, मुफ़्ती के साथ सरकार चलाते हुए भी बीजेपी की नीति कश्मीर को दिल्ली से नियंत्रित करने वाली रही. बीजेपी चाहती थी कि वह कश्मीर में वैकल्पिक राजनीतिक जगह को ख़त्म कर दे. स्थानीय राजनीतिक दलों की रसूख़ को ख़त्म कर दे जिससे कश्मीर में भी वह अपनी जगह बना सके."
ऐसे में तीन साल पहले तो उन्होंने ये नहीं सोचा होगा कि 2019 के चुनाव में अंकगणित के लिहाज़ से ये सीट अहम साबित होगी. बल्कि उस समय वह दक्षिणी कश्मीर में पीडीपी की राजनीतिक ज़मीन को ख़त्म करके अपनी जगह बनाना चाहती थी."
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बीजेपी को राजनीतिक लाभ?
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक हल्कों में चुनाव आयोग के इस कार्यक्रम की निंदा हो रही है.
बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर बताते हैं, स्थानीय पार्टियां इस समय कह रही हैं कि शायद बीजेपी ये सोच रही है कि पहले केंद्र में सरकार बनाई जाए, पूरी मशीनरी अपनी हो. उसके बाद ही विधानसभा चुनाव कराए जाएं क्योंकि बीजेपी को लगता है कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो सर्जिकल स्ट्राइक हुई हैं, उसका फ़ायदा उन्हें जम्मू और लद्दाख़ में होगा. पीडीपी और नेशनल कान्फ्रेंस ये आरोप लगा रही हैं."
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आम लोगों कीप्रतिक्रिया?
कश्मीर का अनंतनाग इलाक़ा वह जगह है जिसे आज भी कुछ स्थानीय लोग 'इस्लामाबाद' कहते हैं.
साल 1950 में बख़्शी ग़ुलाम मोहम्मद प्रशासन ने इस क्षेत्र का नाम बदलकर 'अनंतनाग' रख दिया था. ये वह जगह है जहां सर्दियों में भारी बर्फ़बारी होती है.
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बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर बताते हैं, लोग अनंतनाग को इस्लामाबाद उस दौर से कहते आए हैं जब पाकिस्तान का जन्म भी नहीं हुआ था. इस जगह के नाम को लेकर अकादमिक क्षेत्र में काफ़ी शोध भी हुआ है."
वहीं, अगर चुनावों को लेकर स्थानीय लोगों के उत्साह की बात करें तो यहां के लोग फ़िलहाल चुनाव को लेकर बहुत उत्साहित नज़र नहीं आते हैं.
रियाज़ मसरूर बताते हैं, पूरे भारत में इस समय चुनाव का माहौल है. लेकिन अनंतनाग के लोगों के लिए फ़िलहाल चुनाव कोई मुद्दा नहीं है. क्योंकि इस बार बीते 29 सालों की सबसे ख़तरनाक सर्दी पड़ी है. अभी भी ये इलाक़ा सर्दी की चपेट में है. ऐसे में फ़िलहाल तो लोगों के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल ठंडा ही है."