एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटSanjay DasImage caption नुसरत जहां पश्चिम बंगाल में कठिन नज़र आ रहे लोकसभा चुनावों में म
इमेज कॉपीरइटSanjay DasImage caption नुसरत जहां
पश्चिम बंगाल में कठिन नज़र आ रहे लोकसभा चुनावों में मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इस बार भी पिछली बार की तरह ग्लैमर के आजमाए फार्मूले का सहारा लिया है.
पिछली बार फ़िल्मी सितारों के सहारे ही उन्होंने पार्टी की सीटों की तादाद साल 2009 के 19 से बढ़ा कर 34 करने में कामयाबी हासिल की थी.
इसलिए अबकी बार भी उन्होंने ग्लैमर के हथियार का ही सहारा लिया है. अब की बार एक पूर्व अभिनेत्री संध्या राय और अभिनेता तापस पाल का पत्ता भले ही ममता ने काट दिया हो, उनकी जगह बांग्ला फ़िल्मों की दो शीर्ष अभिनेत्रियों- मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां को मैदान में उतारकर उन्होंने सबको चौंका दिया है.
इसके साथ ही लोहे को लोहा से काटने की तर्ज पर उन्होंने पूर्व अभिनेत्री मुनमुन सेन को बांकुड़ा संसदीय सीट से हटाकर आसनसोल में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के संभावित उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो के मुकाबले खड़ा कर उनकी राह मुश्किल कर दी है.
इमेज कॉपीरइटSanjay DasImage caption मुनमुन सेन
ममता ने साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मुनमुन सेन और संध्या राय के अलावा बांग्ला अभिनेता तापस पाल, अभिनेत्री शताब्दी राय और शीर्ष बांग्ला अभिनेता दीपक अधिकारी उर्फ देब को मैदान में उतारा था.
अपने ग्लैमर और तृणमूल कांग्रेस के संगठन के सहारे यह तमाम लोग जीत गए थे. लेकिन तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीत कर संसद पहुंचने वाले अभिनेता से नेता बने इन सांसदों का प्रदर्शन खास नहीं रहा है.
इसके अलावा बांकुड़ा में मुनमुन सेन और मेदिनीपुर में संध्या राय के ख़िलाफ़ पार्टी के भीतर ही असंतोष खदबदा रहा था. पार्टी के नेता उन सीटों पर किसी राजनीतिक चेहरे को मैदान में उतारने की मांग कर रहे थे.
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इमेज कॉपीरइटSanjay DasImage caption मिमी चक्रवर्ती जमीन से जुड़ाव कम
बांकुड़ा के एक तृणमूल नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, जीतने के बाद ऐसे सितारे अपने चुनाव क्षेत्रों के दौरे पर नहीं आते. ग्रामीण इलाक़ों में आधारभूत सुविधाएं नहीं होने की वजह से यह लोग कोलकाता से फोन पर ही कभी-कभार इलाक़े की खोज-खबर ले लेते हैं. इससे लोगों में नाराजगी बढ़ रही थी."
यही वजह है कि ममता ने अबकी मुनमन सेन को बांकुड़ा से हटा कर पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता और राज्य के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री सुब्रत मुखर्जी को वहां उम्मीदवार बनाया है.
बावजूद इसके कि मुनमुन ने पिछली बार उस सीट पर सीपीएम के वरिष्ठ नेता और नौ बार चुनाव जीत चुके बासुदेव आचार्य को 97 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी.
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मेदिनीपुर सीट पर संध्या राय का मामला भी ऐसा ही था. अबकी उनको टिकट नहीं दिया गया है. हालांकि ममता ने कहा है कि संध्या अबकी विभिन्न वजहों से चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं थी.
उनके अलावा पिछली बार नदिया जिले की कृष्णनगर सीट से जीतने वाले अभिनेता तापस पाल शारदा चिटफंड घोटाले के सिलसिले में साल भर से ज़्यादा समय तक भुवनेश्वर की जेल में रहे थे.
उन्होंने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. मुनमुन सेन को बांकुड़ा की बजाय आसनसोल से उतार कर ममता ने एक तीर से दो शिकार किया है.
उन्होंने बांकुड़ा के लोगों की नाराजगी पर मरहम लगाने के साथ ही बीजेपी के बाबुल सुप्रियो के साथ मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.
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इमेज कॉपीरइटSanjay DasImage caption अभिनेता दीपक अधिकारी उर्फ देब की संसद में उपस्थिति बेहद कम महज 11 फीसदी रही है कैसा रहा प्रदर्शन
आख़िर फिल्मी दुनिया से राजनीति में आने वाले इन सितारों का सांसद के तौर पर प्रदर्शन कैसा रहा है? मेदिनीपुर जिले की घाटाल संसदीय सीट से जीतने वाले अभिनेता दीपक अधिकारी उर्फ देब की संसद में उपस्थिति बेहद कम महज 11 फीसदी रही है.
उनके बाद 47 फीसदी उपस्थिति के साथ तापस पाल चौथे 53 फ़ीसदी उपस्थिति के साथ संध्या राय तीसरे स्थान पर रही हैं. इन दोनों को अबकी टिकट नहीं मिला है. अभिनेत्री मुनमुन सेन की पांच साल के दौरान संसद में उपस्थिति 69 फीसदी रही है. इस मामले में शताब्दी राय 74 फीसदी उपस्थिति के साथ पहले स्थान पर हैं.
संसद में मौजूदगी भले सबसे कम रही हो, सांसद निधि के खर्च के मामले में इन सितारों का प्रदर्शन बेहतर रहा है. इसका श्रेय काफी हद तक राज्य के विकास को हथियार बनाने वाली ममता बनर्जी को दिया जा सकता है.
दीपक अधिकारी राज्य के सांसदों में चौथे स्थान पर रहे हैं. उन्होंने इस दौरान अपनी निधि की 102 फीसदी रकम खर्च की. संध्या राय का स्थान इस मामले में तीसरा रहा है. उन्होंने अपनी निधि की करीब 104 फीसदी रकम खर्च कर दी.
उनके पास ब्याज सहित उक्त निधि में 26.92 करोड़ रुपए की रकम थी. उन्होंने 27.89 करोड़ रुपए की परियोजनाओं की सिफ़ारिश की थी और यह पूरी रकम आवंटित कर दी गई थी.
सांसद शताब्दी राय की सांसद निधि में से 2.76 करोड़ रुपए की रकम खर्च नहीं हो सकी जबकि मुनमुन सेन के मामले में यह आंकड़ा 4.95 करोड़ रुपए रहा. तापस पाल की सांसद निधि में से 4.92 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए जा सके.
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पहली बार चुनाव मैदान में दो अभिनेत्रियां
बांग्ला फ़िल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री मिमी चक्रबर्ती और नुसरत जहां पहली बार चुनाव मैदान में हैं. हालांकि यह दोनों पहले भी तृणमूल कांग्रेस की सभाओं और रैलियों में नजर आती रही हैं.
मिमी कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से मैदान में हैं. वह कहती हैं, राजनीति मेरे लिए नई चीज है. लेकिन मैं फिल्मों की अपनी भूमिकाओं की तरह इस नई भूमिका को भी जिम्मेदारी और ईमनादारी से निभाने और लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करूंगी."
उधर, नुसरत जहां कहती हैं, राजनीति में आने की इच्छा तो नहीं थी. लेकिन जब दीदी ने इतनी अहम जिम्मेदारी सौंप ही दी हैं तो मन लगा कर उसे निभाने का प्रयास करूंगी."
ममता ने नदिया जिले का रानाघाट सीट पर अबकी तृणमूल विधायक सत्यजीत विश्वास की विधवा को टिकट दिया है. सत्यजीत की सरवस्ती पूजा के पंडाल में सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
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इमेज कॉपीरइटSanjay Dasकामयाब फॉर्मूला
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता ने स्टार पावर का अपना कामयाब फॉर्मूला अपनाया है.
एक पर्यवेक्षक मदन मोहन अधिकारी कहते हैं, ममता ने ख़ासकर दो शीर्ष अभिनेत्रियों को मैदान में उतार कर विपक्ष को करार झटका दिया है. इसी तरह शारदा घोटाले के अभियुक्त तापस पाल को टिकट नहीं देकर उन्होंने विपक्ष के हाथ से एक मुद्दा छीन लिया है."
वह कहते हैं कि सितारों के मैदान में उतरने से जीत की गारंटी तो मिलती ही है, ख़ासकर महिला अभिनेत्रियों को टिकट देकर ममता ने खुद को महिलाओं का सबसे बड़ा शुभचिंतक होने का दावा भी मजबूत किया है.
ममता ने उम्मीदवारों की सूची जारी करते वक्त कहा था कि यह तमाम दलों को मेरी चुनौती है. हमने 41 फीसदी महिलाओं को टिकट देकर सबको पीछे छोड़ दिया है.
अब बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में भी ममता का यह फार्मूला पहले की तरह कामयाब रहेगा? लाख टके के इस सवाल का जवाब तो भविष्य ही देगा.
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