एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesहाल ही में देश और दुनिया के 108 अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि कुछ साल पहले तक
इमेज कॉपीरइटGetty Images
हाल ही में देश और दुनिया के 108 अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि कुछ साल पहले तक भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर जुटाए जाने वाले आंकड़ों को विश्वसनीयता हासिल थी लेकिन बीते कुछ सालों से इन आंकड़ों और आंकड़े जुटाने वाली संस्थाओं पर राजनीतिक प्रभाव दिखाई दे रहा है.
इस मुद्दे पर देश-दुनिया के कई अर्थशास्त्रियों ने इसी महीने एक ओपन लेटर लिख कर सरकार पर हस्तक्षेप का आरोप लगाया था.
अर्थशास्त्रियों ने अपने इस पत्र में मौजूदा भारत सरकार के नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं.
इसके बाद भारत के 131 चार्टेड अकाउंटेंट्स (सीए) ने पत्र लिखकर अर्थशास्त्रियों के तर्कों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना आधारहीन है.
ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर सीए और अर्थशास्त्रियों के बीच छिड़े इस विवाद में भारत की आर्थिक हालत को लेकर किस वर्ग के आंकड़े सही है.
बीबीसी हिंदी ने यही समझने के लिए अर्थशास्त्र के जानकार और व्यापारिक मामलों की समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हाके साथ बात करके कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है.
1 - सीए और अर्थशास्त्रियों में सही कौन है?
अर्थशास्त्री और सीए दोनों ही आंकड़ों को अपने-अपने नज़रिए से देखते हैं. ऐसे में पुख्ता तौर पर ये नहीं कहा जा सकता है कि भारत की आर्थिक हालत को लेकर सीए सही हैं या अर्थशास्त्री. हां ये ज़रूर ये कहा जा सकता है कि दोनों अपनी-अपनी तरह से सही हैं.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
सीए आंकड़ों के स्रोत की सत्यता की जांच करते है कि स्रोत ठीक है या नहीं. वहीं, अर्थशास्त्री आंकड़ों को परिभाषित करने की कोशिश करते हैं.
लेकिन जब अर्थशास्त्री आंकड़ों को परिभाषित करने की कोशिश करते हैं तो कहीं न कहीं उनकी विचारधारा भी इसमें हावी हो जाती है. इसी वजह से ये कहा जा सकता है कि दोनों के अपने-अपने तर्क और दलील हैं.
ऐसे में ये कहना बहुत मुश्किल है कि दोनों में से कौन सही है और कौन ग़लत है? और दोनों की बात मानने वाले वर्ग अलग-अलग हैं. एक वर्ग अर्थशास्त्रियों की बात को सही मानेगा तो वहीं दूसरा वर्ग चार्टेड अकाउंटेंट की बात को सही मानता है.
2 - आम लोग इसका क्या मतलब निकालें?
अर्थशास्त्री आंकड़ों को अपने चश्मे से देखते हैं. अगर कोई ग्लास पानी से आधा भरा है तो एक अर्थशास्त्री कहेगा कि ग्लास आधा खाली है. वहीं, दूसरा अर्थशास्त्री कहेगा कि ग्लास आधा भरा है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
एक अर्थशास्त्री कहेगा कि जब विकास दर सात प्रतिशत है तो ये कैसे कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुज़र रही है. वहीं, दूसरा अर्थशास्त्री कहेगा कि हमारा इंप्लॉयमेंट रेट बढ़िया नहीं है. इस तरह से दो अर्थशास्त्री किसी भी एक आंकड़े की एक परिभाषा को लेकर एकमत नहीं हो सकते हैं.
क्योंकि वे आंकड़ों का मतलब निकालते समय अर्थशास्त्र के तमाम सिद्धांत और मॉडल्स को ध्यान में रखते हैं. और उनके आकलन में विचारधारा का पुट रहता है.
अब इस विवाद के बाद आम लोगों के लिए एक समस्या खड़ी होती है कि वे देश की आर्थिक हालत को किस तरह देखें.
ऐसे में इसका समाधान है कि आम लोग अपने स्तर पर आंकड़ों की बारीकियां समझने की कोशिश करें. और अपने आकलन को माइक्रो लेवल से शुरू करके मैक्रो लेवल तक ले जाएं तब वे किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं.
इमेज कॉपीरइटReuters
सरल शब्दों में कहें तो लोगों को ये देखना चाहिए कि उनके ग्राम, कस्बे या शहर में किसी एक साल में कितने युवाओं को रोजगार मिला और वर्तमान साल में कितने युवाओं को रोजगार मिला.
लेकिन इसमें ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि दोनों ही सालों में नौकरी करने के लिए तैयार युवाओं की संख्या (सैंपल साइज़) समान रखा जाए ताकि अंतर किसी भी तरह से भ्रमित करने वाला न हो.
इस आकलन के बाद राज्य और देश के आंकड़ों को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.
3 - क्या आर्थिक आंकड़ों पर राजनीतिक प्रभाव पड़ रहा है?
अर्थशास्त्रियों ने अपने खत में कहा है कि आंकड़ों पर राजनीतिक प्रभाव पड़ता हुआ दिख रहा है.
लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब आंकड़ों पर राजनीतिक प्रभाव दिख रहा हो. जब भी इस तरह के आंकड़े आए हैं तो ये कहा जाता रहा है कि आंकड़ों को ठीक ढंग से पेश करने को लेकर राजनीतिक प्रभाव डाला गया है.
इसके साथ ही जब आंकड़े बुरे आते हैं तो कहा जाता है कि इन आंकड़ों को लेकर कहीं न कहीं किसी तरह का दुराग्रह रहा है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
इससे पहले की सरकारों में भी जब कोई आंकड़ा आता था तो कोई न कोई वर्ग ये कहता था कि राजनीतिक प्रभाव के कारण ये आंकड़ा अच्छा दिखाई दे रहा है.
और जब आंकड़े खराब होते थे तो कहा जाता था कि जानबूझकर आंकड़ों में कमी दिखाई गई है ताकि सरकार को नीचा दिखाया जा सके.
ऐसे में ये आरोप कोई पहली बार नहीं लगे हैं.
4 - क्या नीति आयोग ने अधिकार-क्षेत्र का उल्लंघन किया?
अर्थशास्त्रियों ने अपने खत में कहा है कि साल 2018 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग और केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने दो प्रतिस्पर्धी बैक सिरीज़ डेटा तैयार किया था. इन दोनों में पिछले दशक के विकास को लेकर विराधाभास देखा गया.
इसके बाद राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के आंकड़ों को वेबसाइट से हटा लिया गया. और, इसके बाद केंद्रीय सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों को नीति आयोग ने जारी किया.
अब इस मामले में नीति आयोग को बीच में नहीं आना चाहिए था. क्योंकि आंकड़ों को जारी करने का काम सांख्यिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है और ये काम उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए था.
नीति आयोग का काम आंकड़ों को लेकर सलाह देना है और आंकड़े को पेश करने की ज़िम्मेदारी उन्हें नहीं देनी चाहिए.
5 - आंकड़ों को लेकर क्या बाजीगरी की गई?
ये एक अहम सवाल है कि क्या विकास दर से जुड़े आंकड़ों को लेकर बाज़ीगरी की गई.
भारत में आंकड़ों के आकलन के लिए हर पांच सालों में आधार वर्ष बदला जाता है. पहले 2004-05 आधार वर्ष था. इसके बाद 2011-12 आधार वर्ष हुआ. अब एक बार फिर आधार वर्ष बदलने वाला है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
सरल शब्दों में इसका मतलब ये होता है कि किसी एक वर्ष के आंकड़ों को आधार मानकर उसके बाद के आंकड़ों की तुलना आधार वर्ष के आंकड़ों से की जाती है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में प्रगति हो रही है या फिर वो पिछड़ रही है.
अब बात करते हैं बैक सिरीज़ डेटा की. दरअसल जब आधार वर्ष के आंकड़ों की तुलना पिछले आधार वर्ष के आंकड़ों से की जाती तो उसके बाद बताया जाता है कि अर्थव्यवस्था की हालत कैसी चल रही है.
ऐसे में जब साल 2015 में बैक सिरीज़ के आंकड़े आए थे तो उस समय काफ़ी तारीफ़ की गई थी कि पहले काफ़ी प्रगति हुई थी. इसके बाद इसी फॉर्मूले को अपनाकर 2016-17 और 2017-18 की विकास दर में बदलाव की बात की गई तो आलोचना की गई.
अब एक ही व्यवस्था के जरिए हासिल किए गए आंकड़ों के मायने पक्ष में होते हैं तो वो आंकड़े ठीक होते हैं. लेकिन उसी व्यवस्था के आधार पर दूसरे आंकड़े आते हैं जो आपके लिए अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते हैं तो वो आंकड़ा ग़लत साबित हो जाता है.
भारत में हम आंकड़ों को सही तरीके से पेश करने की कोशिश करते हैं तो उसमें कहीं न कहीं कोई कमी नज़र आती है. इसका नतीजा ये होता है कि हमेशा आंकड़ों के ऊपर सवाल उठाए जाते हैं.
ये नहीं भूलना चाहिए कि आंकड़ा एक होता है लेकिन उसे किस तरह से पेश किया जाता है, वो काफ़ी अहम है.