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ख़ुदकुशी से मरने वालों में पुरुष ज़्यादा क्यों हैं

WikiFX
| 2019-03-25 15:00

एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesछह साल पहले मेरे भाई ने ख़ुदकुशी कर ली थी. तब वह 28 साल का था. विश्व स्वास्थ

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छह साल पहले मेरे भाई ने ख़ुदकुशी कर ली थी. तब वह 28 साल का था.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमानों के मुताबिक़ 2016 में ख़ुदकुशी से 7,93,000 मौतें हुईं. इनमें से ज़्यादातर पुरुष थे.

उसी साल ब्रिटेन में पुरुष ख़ुदकुशी दर 1981 से लेकर अब तक सबसे कम रही- प्रति एक लाख आबादी पर 15.5 मौतें. फिर भी पुरुषों में 45 साल की उम्र से पहले तक मौत का सबसे बड़ा कारण है- ख़ुदकुशी.

ब्रिटेन की महिलाओं में ख़ुदकुशी से होने वाली मौत की दर पुरुषों की दर के एक-तिहाई है. प्रति लाख आबादी पर 4.9 मौतें.

ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों के ख़ुदकुशी से मरने की आशंका तीन गुनी ज़्यादा है. अमरीका में यह 3.5 गुनी है, रूस और अर्जेंटीना में 4 गुनी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक़ क़रीब 40 फ़ीसदी देशों में पुरुषों के ख़ुदकुशी करने की दर प्रति एक लाख आबादी पर 15 से ज़्यादा है. केवल 1.5 फ़ीसदी देशों में महिलाओं के ख़ुदकुशी करने की दर पुरुषों से अधिक है.

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption महिलाओं के अवसाद से ग्रस्त होने की आशंका ज़्यादा रहती है यह असमानता क्यों

मनोवैज्ञानिक और अमरीकन फ़ाउंडेशन फ़ॉर सुसाइड प्रिवेंशन में रिसर्च की वाइस-प्रेसिडेंट जिल हार्केवी-फ्रीडमन कहती हैं, “जब से हम आंकड़े जमा कर रहे हैं, तब से हमने यह असमानता देखी है.”

अमरीका का यह स्वास्थ्य संगठन ख़ुदकुशी से प्रभावित होने वाले लोगों की मदद करता है.

ख़ुदकुशी एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है, जिसके कई कारण हो सकते हैं. मौत के बाद ख़ुदकुशी के पीछे की असल वजह के बारे में पता लगाना भी मुमकिन नहीं है.

इमेज कॉपीरइटGetty Imagesअवसाद ज़्यादा, ख़ुदकुशी कम

जैसे-जैसे मानसिक सेहत को लेकर जागरूकता बढ़ी है, इसके संभावित कारणों के बारे में लोगों की समझ बढ़ी है. लेकिन लैंगिक भेद का सवाल आज भी क़ायम है.

यह सवाल तब और जटिल हो जाता है जब हम देखते हैं कि महिलाओं में अवसाद की दर पुरुषों से ज़्यादा है.

ख़ुदकुशी की कोशिश करने के मामले में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं. उदाहरण के लिए, अमरीका में वयस्क महिलाओं ने पुरुषों से 1.2 गुना ज़्यादा बार ख़ुदकुशी की कोशिश की.

ख़ुदकुशी करने के पुरुषों के तरीक़े ज़्यादा उग्र होते हैं. कोई बचाने की कोशिश करे, उससे पहले ही जान चले जाने का ख़तरा ज़्यादा होता है.

ख़ुदकुशी के साधनों तक पहुंच होना भी एक बड़ा कारक है. उदाहरण के लिए, अमरीका में हर 10 में से 6 बंदूक़ों के मालिक पुरुष हैं. वहां आधी से ज़्यादा आत्महत्याएं गोली मारकर होती हैं.

पुरुष इन तरीक़ों को इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे अपने काम को पूरा करने का अधिक पक्का इरादा रखते हैं.

ख़ुद को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश में जख़्मी होकर अस्पताल पहुंचे 4,000 से ज़्यादा लोगों के अध्ययन से पता चला कि पुरुषों में महिलाओं के मुक़ाबले ख़ुदकुशी की इच्छा ज़्यादा प्रबल थी.

सवाल है कि पुरुष क्यों जूझ रहे हैं और इस बारे में क्या किया जा सकता है?

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  • क्या बीमारियों को रोक सकता है एआई?

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption लड़कों को बचपन से सिखाया जाता है कि उन्हें रोना नहीं है वजह क्या है

यह कहना बहुत आसान है कि महिलाएं अपनी समस्याएं साझा करने को तैयार रहती हैं, जबकि पुरुष उनको छिपाए रखते हैं.

बहुत से समुदायों में पुरुषों को यह सिखाया जाता है कि तुम मज़बूत हो और यह कभी मत मानो कि तुम मुश्किल में हो.

ऑस्ट्रेलिया में 24 घंटे संकट सहायता और ख़ुदकुशी रोकने की सेवा देने वाली चैरिटी 'लाइफ़लाइन“ के पूर्व कार्यकारी निदेशक कोलमैन ओ'ड्रिसोल कहते हैं, ”हम बच्चों को बताते हैं कि लड़के रोते नहीं.

“हम छोटी उम्र से ही लड़कों को समझा देते हैं कि भावनाएं ज़ाहिर नहीं करनी, क्योंकि ऐसा कमज़ोर लोग करते हैं.”

कनाडा में सेंटर फ़ॉर सुसाइड प्रिवेंशन की कार्यकारी निदेशक मारा ग्रुनौ कहती हैं, “मां बेटों की तुलना में बेटियों से ज़्यादा बातें करती हैं. वे अपनी भावनाएं साझा करती हैं और एक-दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझती हैं.”

“हम महिलाओं से भावुक होने की उम्मीद करते हैं.”

पुरुषों में यह स्वीकार करने की संभावना कम हो सकती है कि वे असुरक्षित महसूस करते हैं. डॉक्टर के पास जाने पर भी वे महिलाओं की तुलना में कम बोलते हैं.

ब्रिटेन के एक मेडिकल जर्नल के अध्ययन में पाया गया कि सामान्य प्राथमिक चिकित्सा परामर्श लेने में पुरुष महिलाओं से 32 फीसदी पीछे हैं.

अवसाद के लिए डॉक्टरी सलाह लेने में भी पुरुष महिलाओं से 8 फ़ीसदी पीछे हैं.

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption पुरुष डॉक्टरों की मदद भी कम ही लेते हैं मदद मांगिए

हार्केवी-फ्रीडमन कहती हैं, “मानसिक सेहत के लिए पुरुष कम मदद मांगते हैं. ऐसा नहीं है कि पुरुषों में ऐसी समस्याएं नहीं होतीं, लेकिन वे यह जान नहीं पाते कि उनका तनाव उन्हें ख़ुदकुशी के जोख़िम में डाल रहा है.”

यदि किसी व्यक्ति को यह पता नहीं है कि उनकी मानसिक स्थिति ख़ुद उनके लिए संकट का कारण बन सकती है तो उन्हें यह भी पता नहीं होगा कि उनकी मदद के लिए कुछ किया भी जा सकता है.

हार्केवी-फ्ऱीडमन का कहना है कि ख़ुदकुशी करने वालों में से केवल एक-तिहाई लोगों को ही उस समय मनोचिकित्सा मिल रही होती है.

कुछ लोग डॉक्टरी मदद लेने की जगह ख़ुद से भी अपना इलाज करने की ग़लती करते हैं.

हार्केवी-फ्रीडमन कहती हैं, “पुरुषों में मादक पदार्थों और शराब के सेवन की प्रवृत्ति अधिक होती है, जो उनके संकट को प्रतिबिंबित करती है. यह ख़ुदकुशी की संभावना को भी बढ़ाती है.”

महिलाओं की तुलना में पुरुषों की शराब पर निर्भरता दोगुनी हो सकती है. शराब का सेवन अवसाद और आवेगी व्यवहार को बढ़ा सकता है. इसमें ख़ुदकुशी का भी जोख़िम है.

  • दुनिया बर्बाद होने की ये वजहें, भारत कितना क़रीब

  • पेट से जुड़ा है दिमाग़ी सेहत का राज़

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption पुरुषों में नशे को लेकर झुकाव भी ज़्यादा होता है मंदी और नौकरी

अन्य जोख़िम कारक परिवार या काम से जुड़े हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, आर्थिक मंदी में बेरोज़गारी बढ़ती है और ख़ुदकुशी की दर बढ़ने का भी ख़तरा रहता है. अक्सर मंदी के 18-24 महीने बाद ऐसा होता है.

2015 के एक अध्ययन से पता चला था कि बेरोज़गारी दर 1 फीसदी बढ़ने से ख़ुदकुशी दर में 0.79 फीसदी की बढ़ोतरी होती है.

पैसे की चिंता हो या नौकरी ढूंढ़ने का संकट हो तो किसी की भी मानसिक सेहत बिगड़ सकती है. इसके साथ सामाजिक दबाव और पहचान के संकट के तत्व भी हैं.

पुरुषों की ख़ुदकुशी रोकने के प्रति समर्पित ब्रिटिश चैरिटी “कैंपेन अगेंस्ट लिविंग मिजरेब्ली” (Calm) के सीईओ सिमॉन गनिंग कहते हैं, “हम अपने साथियों के मुक़ाबले ख़ुद को आंकने और आर्थिक रूप से सफल होने में अपना पूरा जीवन लगा देते हैं.”

“जब ऐसे आर्थिक कारक होते हैं जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते तो बहुत मुश्किल हो जाती है.”

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption समय पर मदद न मांगने से भी हालात ख़राब हो जाते हैं

अमरीका में स्वास्थ्य बीमा अक्सर रोज़गार से जुड़े होते हैं. अगर अवसाद या मादक पदार्थों के सेवन से छुटकारा दिलाने के लिए किसी व्यक्ति का इलाज चल रहा हो और उसकी नौकरी चली जाए तो वह इलाज से भी वंचित हो जाता है.

अकेलेपन के भी जोखिम हैं. यह जीवन के हर क्षेत्र में प्रकट हो सकता है.

ग्रुनौ कहती हैं, “बेहद ही सफल पेशेवर लोग, जिन्होंने अपने करियर को किसी भी दूसरी चीज़ से ज़्यादा तवज्जो दी है, वह ख़ुद को पिरामिड के शीर्ष पर अकेले पा सकते हैं.”

यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कोई बाहरी कारक भले ही किसी व्यक्ति के अंदर आत्मघाती प्रवृत्ति को बढ़ा सकता है, लेकिन यह अकेला कारण नहीं हो सकता.

हार्केवी-फ्रीडमन कहती हैं, “लाखों लोगों की नौकरियां जाती हैं. हममें से लगभग सभी लोग कोई न कोई रिश्ता खो देते हैं, लेकिन हम सब ख़ुदकुशी नहीं करते.”

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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसंभावित समाधान

इस जटिल समस्या का कोई सीधा हल नहीं है. इसके लिए ग़ैर-लाभकारी संगठन कई कार्यक्रम और नीतियां बना रहे हैं.

उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या रोकथाम समूह सांस्कृतिक प्रतिमानों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

“आर यू ओके दिवस” के रूप में शुरू की एक पहल में लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे ऐसे लोगों से बातचीत शुरू करें जो जीवन से संघर्ष कर रहे हैं.

फ़ुटबॉल देखते हुए या बाइक राइड के लिए जाने पर चुप रहने वाले व्यक्तियों को बातें करने के लिए प्रेरित करने के लिए “शोल्डर-टू-शोल्डर प्रिंसिपल” शुरू किया गया है.

एक और पहल है- “मेट्स इन कंस्ट्रक्शन”. यह कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के मज़दूरों के बीच जागरुकता बढ़ाता है. इसमें मज़दूरों को बताया जाता है कि कैसे वे समाधान का हिस्सा बन सकते हैं.

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption ऑस्ट्रेलिया में कंस्ट्रक्शन से जुड़े लोगों के लिए ख़ास कार्यक्रम चलाया गया है

ओड्रिसोल कहते हैं, “ज़ोर इस बात पर है कि पुरुषों को अपनी भावनाएं ज़ाहिर करने के लिए तैयार किया जाए और इसे कमज़ोरी की जगह ताक़त समझा जाए.”

तकनीक भी नये विकल्प दे रही है. हर व्यक्ति अपना सारा बोझ दूसरे पर नहीं डालना चाहता, हेल्पलाइन पर भी नहीं.

ऐसे में कृत्रिम मेधा, जैसे कि चैटबॉट्स, एक असुरक्षित व्यक्ति को संवाद करने और मदद पाने का मौक़ा दे सकती है.

मदद के हाथ

एक और रणनीति यह है कि ख़ुदकुशी करने वाले लोगों के आत्मीय जनों पर पड़ने वाले प्रभावों पर फ़ोकस किया जाए.

Calm के अभियान “प्रोजेक्ट 84” में ख़ुदकुशी के बाद होने वाली बर्बादी पर जोर दिया जाता है.

इस अभियान के नाम में 84 इसलिए जोड़ा गया क्योंकि ब्रिटेन में हर सप्ताह औसतन इतने लोग ख़ुदकुशी करते हैं.

Calm के सीईओ गनिंग कहते हैं, “यह कुछ लोगों को ख़ुदकुशी करने से रोक सकता है. ज़िंदा रहना हमेशा एक विकल्प है.”

कुछ अन्य समाधानों में ख़ुदकुशी को ज़्यादा मुश्किल बनाना शामिल है.

इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption हालात बेहतर हो रहे हैं मगर बहुत काम किया जाना बाक़ी है

इंग्लैंड के ब्रिस्टल में क्लिफ्टन सस्पेंशन ब्रिज पर बैरियर लगा देने के बाद वहां से नीचे कूदकर मरने वालों की संख्या आधी रह गई.

इस बात के भी सबूत नहीं मिले कि आसपास की किसी दूसरी जगह से कूदकर जान देने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई.

ओ'ड्रिसोल का कहना है कि सड़क हादसे रोकने के लिए जितने उपाय किए जाते हैं, उतने उपाय ख़ुदकुशी रोकने के लिए नहीं किए जाते, जबकि ख़ुदकुशी से ज़्यादा लोग जान गंवाते हैं.

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सरकार का ध्यान

ऑस्ट्रेलिया में 2015 में प्रति लाख आबादी पर 12.6 लोगों ने ख़ुदकुशी करके जान गंवाई, जबकि एक दशक में सड़क हादसों में मरने वालों की सबसे ऊंची दर प्रति लाख आबादी पर 4.7 थी. इस बारे में अधिक शोध की भी ज़रूरत है.

हार्केवी-फ्रीडमन कहती हैं, “पुरुषों और महिलाओं की जैवीय संरचना, हार्मोन्स और दिमाग़ के काम करने के तरीक़े में अंतर है, लेकिन उनका अध्ययन एक साथ किया जाता है.”

उनको लगता है कि पुरुषों और महिलाओं का अध्ययन अलग-अलग किया जाना चाहिए.

कुछ सकारात्मक संकेत भी हैं. हार्केवी-फ्रीडमन एक बड़ा बदलाव महसूस करती हैं.

अपने करियर के शुरुआती दिनों की याद करते हुए वह बताती हैं कि तब सुसाइड पर रिसर्च पेपर आसानी से मंज़ूर नहीं किए जाते थे.

उनको इस आधार पर ख़ारिज कर दिया जाता था कि ख़ुदकुशी को रोका नहीं जा सकता.

अब स्थिति बदल गई है. सरकार की भागीदारी भी पहले से बढ़ गई है.

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2018 में मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौक़े पर ब्रिटेन की सरकार ने ख़ुदकुशी की रोकथाम के लिए एक मंत्री बनाने की घोषणा की.

हार्केवी-फ्रीडमन कहती हैं, “ब्रिटेन में हर क़दम सही से उठाया जा रहा है.” उनको लगता है कि ख़ुदकुशी के बारे में राष्ट्रीय रणनीति लागू होने की वजह से इसकी दर में कमी आई है.

ग्रुनौ को भी लगता है कि हालात पहले से बेहतर हुए हैं. “अब हम ख़ुदकुशी के बारे में बातें कर सकते हैं. लोग अब भी भड़क सकते हैं, लेकिन वे बातचीत करने को तैयार हैं.”

इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. ब्रिटेन में ख़ुदकुशी की दर में गिरावट आने से यह स्पष्ट है.

फिर भी यह काफ़ी नहीं है. ख़ुदकुशी से कोई भी जीवन जाए- चाहे वह पुरुष हो या महिला- वह जीवन अनमोल है.

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