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देश में चल रहे लोकसभा चुनाव में सबसे अहम राज्य है उत्तर प्रदेश जहां से सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटें आती हैं. यही वजह है कि हर एक राजनीतिक दल इस राज्य को जीतना चाहता है.
पांच साल पहले जब साल 2014 में लोकसभा चुनाव हुए थे तो भाजपा ने बाकी सभी दलों का सूपड़ा साफ करते हुए 80 में से 72 सीटें अपने कब्ज़े में कर ली थीं.
इस बार सपा बसपा के साथ राष्ट्रीय लोक दल(आरएलडी) भी गठबंधन में शामिल है. आरएलडी की पकड़ मुख्यतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मानी जाती है. यहां की 16 लोकसभा सीटों में से 8 पर मतदान पहले चरण में हो चुका है.
आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह के बेटे जयंत सिंह चौधरी इस बार बागपत से गठबंधन के उम्मीदवार हैं. पिछली बार उन्होंने मथुरा से चुनाव लड़ा था. जाट बहुल बागपत इलाके में जयंत चौधरी को अपनी जीत सुनिश्चित दिख रही है.
बीबीसी के साथ ख़ास बातचीत में जयंत चौधरी ने बताया कि बीते पांच साल में लोगों का मिजाज़ बदल गया है और अब वे भाजपा सच जान चुके हैं.
क्या इस बार गठबंधन कुछ कमाल दिखा पाएगा और इन तीनों दलों में तालमेल बैठ पाएगा. इस पर जयंत चौधरी कहते हैं कि तीनों पार्टियों के कार्यकर्ता आपस में घुलमिल गए हैं.
उन्होंने कहा, ''पिछला चुनाव बहुत ही अनोखा था. लोगों ने बहुत विश्वास के साथ भाजपा को वोट दिया लेकिन बीते पांच साल लोगों के लिए बहुत कठिन रहे. चाहे वो किसान हो या युवा.''
''यह सरकार उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी. इस बीच जब सपा-बसपा-रालोद तीनों पार्टियां साथ में आई हैं तो इससे लोगों को उम्मीद जगी है. मैं पहले चरण के चुनाव से आश्वस्त हूं और जिस तरह से हमारी रैलियों में भारी भीड़ आ रही है वह दिखाता है कि तीनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं में आपसी तालमेल बन गया है.''
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption जयंत चौधरी बागपत से उम्मीदवार हैं राष्ट्र बड़ा या किसान
देश में राष्ट्रवाद का मुद्दा एक बार फिर हावी है. भाजपा लगातार इस मुद्दे को चुनाव में इस्तेमाल कर रही है.
कई ऐसे किसान भी हैं जिन्हें उनकी फसल का उचित दाम भले ही ना मिला हो लेकिन वे राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भाजपा को वोट देने के बात करते हैं.
किसानों को आमतौर पर रालोद का वोटर माना जाता रहा है. इनमें गन्ना किसान अहम हैं. क्या राष्ट्रवाद के सामने किसानों की समस्या छोटी पड़ जाएंगी.
इस पर जयंत चौधरी का कहना है, ''यह ठीक बात है कि जिन लोगों को अपनी जीविका की परेशानी है उन्हें इन्हीं मुद्दों पर मतदान करना चाहिए. यही हमारे सामने चुनौती भी है कि हम इन लोगों को असल मुद्दों की तरफ ला सकें.''
''राष्ट्र तो जनता से ही बनता है. अगर व्यापारी, किसान दुखी हैं तो फिर राष्ट्र कैसे आगे बढ़ेगा. हमें यह भी देखना होगा कि क्या देश के लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. रोमियो स्कवाड हवा में ही रह गया है और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ रहे हैं.''
''पुलिस फ़र्जी एनकाउंटर कर रही है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी ज़्यादा जवान शहीद हो रहे हैं. आतंकवादी घटनाएं बढ़ गई हैं. नक्सलवाद की घटना तो ऐसी हो गई है कि खुद भाजपा के विधायक उसके शिकार बन गए. तो इन सबकी जवाबदेही सरकार की ही बनती है.''
''आखिर पुलवामा की घटना क्यों हुई. यह कितने शर्म का विषय है कि देश का प्रधानमंत्री शहीद के नाम पर वोट मांग रहा है. यह बहुत ही निम्न स्तर की राजनीति है. धीरे-धीरे लोग भी इसे समझ रहे हैं. हम अपने चुनाव प्रचार में भी यह बोल रहे हैं कि पाकिस्तान हमारे लिए मुद्दा नहीं है, किसान मुद्दा है. इस सरकार ने किसान के लिए कुछ नहीं किया.''
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesस्टार उम्मीदवार से कोई फर्क पड़ता है?
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मथुरा में फ़िल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी चुनावी मैदान में हैं. जगह-जगह खेतों से उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया दिख रही हैं. पिछली बार हेमा मालिनी के सामने खुद जयंत चौधरी ही चुनावी मैदान में खड़े थे. क्या इस बार चुनावी समीकरण कुछ बदल जाएंगे.
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इसके जवाब में जयंत चौधरी कहते हैं, ''जहां तक ग्लैमर की बात करें तो खेत में जाकर सिर्फ़ फ़ोटो सेशन करवा लेना काफी नहीं होता. खेत में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. जब मैं सांसद था तो बार-बार जनता के बीच जाता था. एक बार जाने से कुछ नहीं होता.''
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''लोगों की अपने जनप्रतिनिधि से एक उम्मीद होती है जो दूर से हाथ हिला देने और फिर मुंबई चले जाने से पूरी नहीं होती.''
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''पांच साल पहले हालात बहुत अलग थे. भले ही मेरे ख़िलाफ़ कुछ नकारात्मकता रही हो लेकिन उस समय भाजपा के प्रति लोग बहुत सकारात्मक होकर देख रहे थे. हेमा मालिनी एक बड़ा चेहरा हैं, वो किसी भी काम के लिए किसी मंत्री को फोन मिलाती तो क्या उन्हें समय नहीं मिलता. लेकिन उन्होंने अपने इलाके के लिए क्या प्रयास किए यह कोई नहीं बता सकता.''
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पिछली बार जयंत चौधरी ने चुनाव के वक़्त नारा दिया था, ''जिन्ना नहीं गन्ना.'' इस बार उन्होंने नारा दिया है ''पाकिस्तान हारेगा, किसान जीतेगा.''
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