एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटReutersअमरीकी कंपनी पेप्सिको इंडिया ने गुजरात में आलू की खेती करने वाले किसानों पर बीज क
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अमरीकी कंपनी पेप्सिको इंडिया ने गुजरात में आलू की खेती करने वाले किसानों पर बीज के कॉपीराइट के उल्लंघन के केस दर्ज किया है.
कंपनी का कहना है कि लेज (LAYS) चिप्स बनाने में इस्तेमाल होने वाले आलू के किस्म को कंपनी ने भारत में रजिस्टर करा रखा है.
कंपनी का कहना है कि बिना इजाज़त लिए किसान इस किस्म के आलू की खेती नहीं कर सकते. कंपनी ने इस किस्म के आलू की बिना इजाज़त बुआई करने वाले किसानों पर भारत में केस दर्ज किया है.
किसानों पर किए गए केस को लेकर किसान संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध जताया है और केस वापस लेने की मांग की है. किसान संगठन का कहना है कि पेप्सिको ने किसानों पर जो केस किए हैं वो ग़लत हैं.
190 से ज़्यादा कार्यकर्ताओं ने एक पत्र केंद्र और राज्य सरकार को भेजा है जिसमें कहा गया है कि सरकार, अंतरराष्ट्रीय कंपनी पेप्सिको से केस वापस लेने के लिए कहे.
जतन ट्रस्ट से जुड़े हुए सामाजिक कार्यकर्ता कपिल शाह कहते हैं, “पेप्सिको ने साबरकांठा में चार किसानों के ख़िलाफ़ केस किया और इनमें से प्रत्येक के ख़िलाफ़ क़रीब एक-एक करोड़ का दावा ठोंका है.”
इससे पहले 2018 में भी गुजरात के अरवल्ली ज़िले में पांच किसानों पर इसी तरह के केस दर्ज किये गए थे.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesकंपनी का क्या है कहना?
भारत में पेप्सिको कंपनी ने बीबीसी के पूछे गए सवाल का ईमेल के जरिए जवाब दिया- “कंपनी ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए ये कदम उठाया है.”
पेप्सिको इंडिया होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने 1 फरवरी 2016 को एफएल2027 वेराइटी (किस्म) के आलू के बीज का रजिस्ट्रेशन कराया था. इसका प्रोटेक्शन पीरियड 31 जनवरी 2031 तक है.
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इमेज कॉपीरइटAFP/Gettyक्या कहते हैं किसान?
पेप्सिको ने 2018 में अरवल्ली ज़िले के पांच किसानों पर एफ़एल2027 आलू को बोने के मामले में मोडासा कोर्ट में केस दर्ज़ किया था इनमें से एक थे वखतपुर गांव के जिगर पटेल.
जिगर पटेल ने बीबीसी को बताया कि उनका परिवार उनके पुरखों की दो बीघा ज़मीन पर आलू की खेती करता है. वो कहते हैं कि बीते वर्ष पेप्सिको ने उनपर बिना इजाज़त एफएल2027 किस्म के आलू को उगाने को लेकर 25 लाख रुपये का दावा ठोक दिया था. अब तक 11 बार कोर्ट में उनकी पेशी हो चुकी है. मई में सुनवाई की अगली तारीख़ है.
अरवल्ली ज़िले के एक और किसान जीतू पटेल भी उन्हीं किसानों में हैं जिन पर केस किया गया था.
जीतू कहते हैं कि पेप्सिको ने जिन चार लोगों पर 20 लाख रुपये का मामला दर्ज़ कराया है उनमें से एक वो भी हैं.
वो कहते हैं, “इस इलाके में वेंडर के जरिए आलू के किसान पेप्सिको कंपनी के साथ जुड़ते हैं. मेरे भाई पेप्सिको कंपनी की सहायक खेती कार्यक्रम से जुड़े थे. जब कंपनी के लोग चेकिंग के लिए आए तब मैं खुद वहां खेत पर मौजूद था. कुछ समय बाद मुझे पता चला कि कंपनी ने मुझ पर मामला दर्ज कराया है.”
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जीतू कहते हैं कि उनका परिवार चार एकड़ कंपनी में पेप्सिको कंपनी के कार्यक्रम के तहत आलू की खेती करता था.
बीबीसी ने साबरकांठा के वडाली तहसील के उन किसानों को संपर्क किया जिन पर साल 2019 में कंपनी ने केस दर्ज़ किये हैं लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर बात करने से इंकार कर दिया.
जिगर कहते हैं कि किसान के पास आलू की किस्म की जांच करने का कोई साधन नहीं होता है, वो अलग अलग जगह से बीज लाते हैं और उसकी बुआई करते हैं.
वो कहते हैं, “कई किस्मों के आलू एक से दिखते हैं तो किसान कैसे समझे कि कौन सा आलू किस किस्म का है.”
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesक्या कंपनी किसानों पर केस दर्ज कर सकती है?
भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अंबू भाई पटेल कहते हैं, “पेप्सिको इंडिया कि एफएल2027 किस्म के आलू पर विशिष्ट अधिकार की दलील टिक नहीं सकती. वो कहते हैं किसान कई जगह से बीज लाता है, ऐसे में कंपनी किस तरह से उन पर करोड़ों का दावा कर सकती है और ये कैसे कह सकती है कि छोटे-छोटे किसान उनके लिए ख़तरा हैं.”
वहीं जतिन ट्रस्ट के कपिल शाह कहते हैं, “भारत में पीपीवी ऐंड एफ़आरए यानी 'प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लांट वेराइटी ऐंड फ्रार्मस राइट एक्ट' के तहत किसानों को बीज बोने को लेकर सुरक्षा मिली हुई है.”
गुजरात में किसानों के एक संगठन खेड़ूत एकता मंच से जुड़े सागर रबारी कहते हैं कि कंपनी मोनोपॉली और किसानों को डराने धमकाने के लिए यह सब कर रही है.
190 से ज़्यादा कार्यकर्ताओं ने सरकार को जो पत्र लिखा है उसमें कहा गया है कि पेप्सिको पीपीवी ऐंड एफ़आरए की धारा 64 की अपने तरीके से व्याख्या कर रही है.
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इस क़ानून की धारा 64 के मुताबिक रजिस्टर की हुई किस्म को बिना इजाज़त बेचा जाए, आयात-निर्यात किया जाए या फिर उत्पादन किया जाए तो उसे उल्लंघन माना जाएगा.
हालांकि इसी क़ानून की धारा 39(4) में कहा गया है कि इस क़ानून में मौजूद प्रावधानों के बावजूद किसान बीज की बचत कर सकता है, बीज का उपयोग कर सकता है, उसकी दोबारा बुआई कर सकता है, आदान-प्रदान कर सकता है, साझा कर सकता है, या इससे पैदा हुए फ़सल को बेच भी सकता है.
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने इसकी पुष्टि की. वो कहते हैं कि इसकी ब्रांडिंग कर के इसे बेच नहीं सकते हैं.
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26 अप्रैल को अहमदाबाद के कमर्शिलय कोर्ट में साबरकांठा के किसानों पर पेप्सिको ने जो केस किया उसकी सुनवाई हुई. इसमें पेप्सिको ने समाधान करने की बात की. कंपनी ने शर्त रखी है कि किसान इस बात के लिए राजी हो जाएं कि वो या तो इस बीज का इस्तेमाल नहीं करेंगे और यदि उन्हें इसका इस्तेमाल करना है तो इसके लिए उन्हें कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट करना होगा.
किसानों की तरफ से वकील आनंदवर्धन याज्ञनिक ने कहा है कि कंपनी की शर्तों पर किसान सोचकर अपनी राय देंगे. सुनवाई की अगली तारीख़ 12 जून तय की गई है.
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इमेज कॉपीरइटParesh Padhiyarलेज चिप्स का यह आलू कहां से आया?
डीसा आलू रिसर्च केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आरएन पटेल कहते हैं एफ़एल2027 किस्म का आलू अमरीका में 2003 में विकसित किया गया था. भारत में इसे एफ़सी5 के नाम से पहचाना जाता है. उन्होंने बताया, इसके सभी लक्षण प्रोसेसिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले आलू के लायक बनाए गए हैं.
वो बताते हैं, पेप्सिको कंपनी किसानों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फ्रार्मिंग करती है जिसके तहत वो किसानों को खास प्रकार का बीज देती है और उनसे 40 से 45 मिलीमीटर के व्यास वाला आलू लेती है, उससे छोटे आकार का आलू नहीं लेती है.
गूगल पेटेंट्स के मुताबिक एफ़एल2027 किस्म के आविष्कारक रॉबर्ट हूप्स हैं और अमरीका में 2003 में फ्रीटोले नॉर्थ अमरीका इंक नामक कंपनी से इसका पेटेंट करवाया गया था. पेटेंट 2023 तक के लिए है.
डॉ. आरएन पटेल कहते हैं कि जब भी किसी बीज की रजिस्ट्री की जाती है तो उस पर विशेष अधिकार 20 सालों के लिए मिलता है और इस समायवधि के बाद कोई भी बिना इजाज़त या रॉयल्टी के बगैर इस बीज का इस्तेमाल कर सकता है.