एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसासाराम से आठ बार जगजीवन राम सांसद चुने गए और दो बार उनकी बेटी मीरा कुमार.
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सासाराम से आठ बार जगजीवन राम सांसद चुने गए और दो बार उनकी बेटी मीरा कुमार.
दोनों बाप-बेटी कुल मिलाकर यहां से 46 साल सांसद रहे. किसी भी लोकसभा क्षेत्र के लिए 46 साल का वक़्त कोई छोटा नहीं होता.
लेकिन सासाराम को देखने के बाद ऐसा नहीं लगता है कि यहां से उस जगजीवन बाबू को लोगों ने आठ बार सांसद चुना जिनकी ताक़त नेहरू, इंदिरा से लेकर मोरारजी देसाई तक की कैबिनेट में प्रभावशाली रही है.
सासाराम लोकसभा क्षेत्र में मोहनिया के 50 साल के रामप्रवेश राम एक होटल में काम करते हैं. उनका गांव मोहनिया शहर से पाँच किलोमीटर दूर है. जगजीवन राम और मीरा कुमार से सासाराम लोकसभा क्षेत्र को क्या मिला?
इस सवाल के जवाब में रामप्रवेश कहते हैं, ''मीरा कुमार मेरी ही जाति की हैं. इसलिए उन्हीं को वोट करेंगे.'' वो कोई ठोस काम नहीं बता पाते हैं.
सासाराम का महत्व शेरशाह सूरी के कारण भी ख़ास है. शेरशाह सूरी सोलहवीं सदी में इस इलाक़े के जागीरदार थे और इन्होंने मुग़ल शासन को भी अपने नियंत्रण में लिया था.
शेरशाह सूरी (ग्रैंड ट्रक) जीटी रोड के निर्माण को लेकर भी जाने जाते हैं. शेरशाह सूरी का मकबरा सासाराम शहर के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है लेकिन इसकी उपेक्षा से अंदाज़ा लगाया जा सकता है राजनीति और यहां के सांसदों एजेंडे से यह बाहर है.
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सासाराम का बनारस कनेक्शन
मकबरा चारों तरफ़ से एक जलाशय के घिरा है लेकिन पानी से इतनी बदबू आती है कि मानो मकबरा नाले से घिरा हो. मकबरे के भीतर भी साफ़-सफ़ाई नहीं है.
मकबरे की रखवाली में लगे गार्ड कहते हैं कि रात में मच्छर दौड़ा देते हैं. बिहार कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के महासचिव प्रकाश कुमार सिंह सासाराम के ही रहने वाले हैं. उनसे इस मकबरे की उपेक्षा के बारे में पूछा तो उन्होंने स्वीकार किया यह उनकी पार्टी की नाकामी है.
जगजीवन राम और मीरा कुमार ने सासाराम के लिए क्या किया? इस सवाल के जवाब में प्रकाश सिंह कहते हैं, ''सोन नदी पर इंद्रपुरी डैम सबसे बड़ा काम है. इस डैम के कारण ही रोहतास और कैमूर में सिंचाई की सबसे बड़ी समस्या का समाधान मिला और भोजपुरी के कृषि प्रधान समाज में ख़ुशहाली आई. अगर यह बांध नहीं बनता तो खेती-किसानी चौपट हो जाती. इसके अलावा कैमूर में मीरा कुमार ने दुर्गावती जलाशय परियोजना को ज़मीन पर लाया. इन दोनों परियोजनाओं के कारण खेती-किसानी काफ़ी समृद्ध हुई.''
जगजीवन बाबू जब कृषि मंत्री थे तब इंद्रपुरी डैम का निर्माण किया गया था. इस डैम के कारण सोन नदी से कई नहरें निकली हैं. इंद्रपुरी डैम से सासाराम, डेहरी, रोहतास और औरंगाबाद के इलाक़ों में नहर का जाल सा फैल गया और सिंचाई के लिए यह वरदान साबित हुआ. इसी तरह से दुर्गावती जलाशय परियोजना से कैमूर की खेती-किसानी में सिंचाई की समस्या ख़त्म हुई.
सासाराम के लोगों की शिकायत यूनिवर्सिटी और एक बढ़िया अस्पताल को लेकर है. ज़्यादातर लोगों का कहना है कि बाबूजी (जगजीवन राम) और बहन जी (मीरा कुमार) के होते हुए भी सासाराम में एक यूनिवर्सिटी नहीं बन पाई और न ही ढंग का अस्पताल. सासाराम के लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर बनारस जाते हैं और पढ़ाई-लिखाई के मामले में भी बनारस का ही रुख़ करना पड़ता है.
एक तो यहां के लोगों के लिए बनारस लाइफ़ लाइन की तरह है तो दूसरी तरफ़ मीरा कुमार के चुनाव प्रचार में लगे लोग बनारस को अपने लिए ख़तरा मानते हैं. मीरा कुमार के एक कैंपेनर ने कहा, ''बनारस और सासाराम की दूरी काफ़ी कम है. बनारस से प्रधानमंत्री मोदी चुनावी मैदान में हैं. ज़ाहिर है इसका असर सासाराम में भी है.''
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मीरा कुमार ने जताई जाति ख़त्म होने की इच्छा लेकिन राहुल के जनेऊधारी ब्राह्मण होने की बात पर अटक गईं.
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Posted by BBC News हिन्दी on Tuesday, 30 April 2019
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जातीय समीकरण
साल 2014 में मीरा कुमार बीजेपी के छेदी पासवान से चुनाव हार गई थीं. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का कहना है कि पिछली बार राजपूतों की नाराज़गी भारी पड़ी थी लेकिन इस बार ऐसा नहीं है.
प्रकाश सिंह कहते हैं, ''पिछली बार गाँव में स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने को लेकर दलितों और राजपूतों में विवाद हो गया था. इसे लेकर राजपूतों की नाराज़गी मीरा कुमार पर निकल गई थी. हालांकि इस बार अलग स्थिति है. 2017 में किरहिंडी गांव में पासवानों ने राजपूत जाति के अरदेश सिंह की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. बीजेपी प्रत्याशी छेदी पासवान इसी जाति से हैं. इसलिए इस बार राजपूतों की नाराज़गी छेदी पासवान से है.''
सासाराम में ब्राह्मण और राजपूत सवर्णों में सबसे ज़्यादा हैं लेकिन मतदाताओं की सबसे बड़ी तादाद दलितों की है. दलितों में मीरा कुमार की जाति रविदास पहले नंबर पर और दूसरे नंबर पर छेदी पासवान की जाति पासवान है.
सासाराम लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं. मोहनिया, भभुआ, चैनपुर, चेनारी, सासाराम और करहगर. तीन पर बीजेपी के विधायक हैं. एक पर आरएलएसपी, एक पर जेडीयू और एक पर आरजेडी.
मीरा कुमार 74 साल की हैं. वो इस बार सासाराम में फूंक-फूंक कर क़दम रख रही हैं. उनसे पूछा कि सासाराम के लिए उन्होंने क्या किया है?
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इमेज कॉपीरइटGetty Images'जाति ख़त्म होनी चाहिए'
मीरा कुमार ने बीबीसी से कहा, ''ये मैं नहीं बताऊंगी. लोगों से पूछिए. मैंने बहुत काम किया है. मैं विदेश सेवा में थी. चाहती तो विदेश में ही रह जाती लेकिन अपनी मिट्टी से लगाव के कारण ही सासाराम में हूं. मेरी बस दो ही तमन्ना है- एक ग़रीबी ख़त्म हो और दूसरी जाति.''
लेकिन कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी को पार्टी जनेऊधारी ब्राह्मण कहती है ऐसे में मीरा कुमार कांग्रेस की नेता रहते जाति कैसे ख़त्म करेंगी?
इस सवाल के जवाब में मीरा कुमार कहती हैं, ''इस पर मैं कुछ भी टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी.'' छेदी पासवान से मीरा कुमार 2014 के अलावा 1989 और 1991 में भी चुनाव हार चुकी हैं और इस बार की लड़ाई भी आसान नहीं है. मीरा कुमार भी मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं और 2009 में लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष नियुक्त की गईं.
सासाराम बिहार के बाक़ी लोकसभा क्षेत्रों से अलग नहीं है. यहां के लोगों को देखिए तो ज़्यादातर लोग कुपोषित दिखते हैं. ख़ास कर दलितों में.
दलित बस्तियों की हालत बद से बदतर है. न पीने को साफ़ पानी, घर के नाम पर झोपड़ी और बच्चे पढ़ाई के बजाय बाल मज़दूरी में लगे हुए हैं.
जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन 50 साल से ज़्यादा का रहा है. प्रधानमंत्री का पद छोड़ वो कैबिनेट में सभी अहम पदों पर रहे. 1977 और 1979 में वो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते-पहुंचते रह गए थे.
इमेज कॉपीरइटSHANTI BHUSHAN/BBCImage caption हेमवती नंदन बहुगुणा और बाबू जगजीवन राम बाबू जगजीवन रामः मंत्री से बाग़ी तक
बाद में उन्होंने और उनके समर्थकों ने कहा था कि ऊंची जाति के हिन्दू नेता नहीं चाहते हैं कि कोई अछूत प्रधानमंत्री बने.
जगजीवन राम स्वतंत्रता सेनानी भी थे और आज़ाद भारत में वो अपने कुछ अहम कामों के लिए जाने जाते हैं. जगजीवन बाबू अपने ज़माने के बहुत पढ़े-लिखे दलित नेता थे. जगजीवन बाबू 1931 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
तब कांग्रेस गांधी और नेहरू के नेतृत्व में आगे बढ़ रही थी. 1946 से 1963 तक जगजीवन बाबू नेहरू की कैबिनेट में श्रम, ट्रांसपोर्ट, रेलवे और संचार मंत्री जैसे अहम पदों पर रहे.
1966 में जगजीवन बाबू में नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी की कैबिनेट में लौटे. इंदिरा गांधी की कैबिनेट में जगजीवन बाबू कृषि मंत्री बने.
1967 में भारत में भयावह अकाल आया और यह जगजीवन राम के लिए कड़ी परीक्षा की घड़ी थी. इस दौरान जगजीवन बाबू ने कुछ ऐसे क़दम उठाए जिससे भारत को खाद्य उत्पादन बढ़ाने में काफ़ी मदद मिली और विदेशों से खाद्य आयात की निर्भरता कम हुई.
जगजीवन राम 1970 से 1974 तक रक्षा मंत्री रहे और इसी दौरान भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अहम युद्ध जीता. भारत ने पाकिस्तान को तोड़ बांग्लादेश बनाया था.
1969 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस पार्टी में पुराने नेताओं के ख़िलाफ़ क़दम उठाया तो जगजीवन राम उनके साथ खड़े रहे. आख़िरकार कांग्रेस पार्टी की कमान इंदिरा के हाथों में आ गई.
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इमरजेंसी में इंदिरागांधीके साथ
लेकिन 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की तो जगजीवन बाबू परेशान हुए. हालांकि तब भी वो कैबिनेट में बने रहे.
लेकिन 1977 में जब इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा तो वो सरकार से बाहर हो गए और तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया. जगजीवन बाबू कांग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने 'कांग्रेस फोर डेमोक्रेसी' नाम की नई पार्टी बनाई.
तब उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी 'डेढ़ लोगों के शासन' के ख़िलाफ़ लड़ेगी. जगजीवन बाबू इंदिरा गांधी और संजय गांधी को डेढ़ लोगों की सरकार कहते थे.
1977 में इंदिरा गांधी की हार हुई तो इसका बड़ा कारण जगजीवन बाबू का अलग होना माना गया.
1977 में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और जगजीवन राम इस सरकार में रक्षा मंत्री. जगजीवन बाबू ने आगे चलकर अपनी पार्टी का जनता पार्टी में विलय कर दिया.
1984 में जगजीवन बाबू आख़िरी बार चुनाव जीते और तीन साल बाद इनका निधन हो गया.