एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesहॉन्ग कॉन्ग में विवादित प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में 11 सप्ताह पहले शुरू ह
इमेज कॉपीरइटGetty Images
हॉन्ग कॉन्ग में विवादित प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में 11 सप्ताह पहले शुरू हुआ प्रदर्शन अब भी जारी हैं.
इस विधेयक में हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को मुक़दमा चलाने के लिए चीन को प्रत्यर्पित किए जाने का प्रावधान था. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि अगर यह क़ानून बन गया तो चीन इसे विरोधियों और आलोचकों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकता है.
हॉन्ग कॉन्ग ने इस विधायक को वापस लेने की बात कही है मगर प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जगह-जगह पर विरोध करने वाले लोगों पर कुछ लोगों ने हमला किया और पुलिस ने कुछ नहीं किया.
अब उनका आरोप है कि कुछ जगहों पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अतिरिक्त बल प्रयोग किया. अब वे इसकी जांच की मांग के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
चीन की सरकार ने प्रदर्शनकारियों की निंदा की है और यह भी कहा है कि वह चुप नहीं बैठेगा. ऐसे में इस बात को लेकर चर्चा होने लगी है कि क्या चीन अपना धैर्य खोकर सीधे हॉन्ग कॉन्ग में दख़ल दे सकता है?
इमेज कॉपीरइटGetty Images
सवाल ये भी हैं कि हॉन्ग कॉन्ग में हस्तक्षेप करने के लिए चीन के पास क्या विकल्प हैं और क्या वो वहां अपनी सेना भेज सकता है?
क्या चीन अपनी सेना भेज सकता है?
साल 1997 में जब हॉन्ग कॉन्ग को चीन के हवाले किया गया था तब से हॉन्ग कॉन्ग का संविधान इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट है कि चीन की सेना कब यहां हस्तक्षेप कर सकती है.
प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा
हांगकांग में गहराया सरकार विरोधी प्रदर्शन
'एक देश-दो प्रणालियां' के तहत विशेष दर्जा रखने वाले हॉन्ग कॉन्ग में चीनी सेना सिर्फ़ तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब हॉन्ग कॉन्ग की सरकार इसके लिए अनुरोध करे या फिर क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए और आपदा के समय सेना की ज़रूरत हो.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
मगर विश्लेषकों का मानना है कि यह बात कल्पना से भी परे है कि चीन की सेना हॉन्ग कॉन्ग में देखने को मिलेगी.
अगर चीनी सेना हॉन्ग कॉन्ग में विरोध कर रहे लोगों को रोकने के लिए आती है तो यह हॉन्ग कॉन्ग के लिए विनाशकारी होगा. भले ही सेना घातक बल प्रयोग न करे मगर उसके आने के कारण अर्थव्यवस्था के अस्थिर होने का ख़तरा पैदा हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय नाराज़गी भी बढ़ेगी.
सिडनी के लोवी इंस्टिट्यूट के रिसर्च फ़ेलो बेन ब्लैंड ने एएफपी को बताया कि चीन “प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए” हस्तक्षेप की धमकी दे रहा है.
ये भी पढ़ें- हॉन्ग कॉन्ग: प्रदर्शनों के चलते उड़ानें रद्द की गईं
हॉन्ग कॉन्ग: रेलवे स्टेशन पर आम लोगों की पिटाई
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस मुख्यालय को घेरा
अभी तक चीन के ऑफिस ने हॉन्ग कॉन्ग पर कहा है कि हमें पुलिस पर पूरा विश्वास है कि वो देश के माहौल को संभाल लेगें. लेकिन प्रवक्ता यांग गुआंग ने यह भी चेतावनी दी कि “जो लोग आग से खेलेंगे, वो इससे जलकर ख़त्म हो जाएंगे.”
इमेज कॉपीरइटGetty Images
वहीं, मैक नीरी विश्वविद्यालय में चीन के शोधकर्ता एडम नी कहते हैं कि चीन का हस्तक्षेप घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की सरकार के लिए जोखिम पैदा कर सकता है.
वो कहते हैं, “किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई मौजूदा हालात को और ख़राब करेगी.”
क्या चीन राजनीतिक रूप से हस्तक्षेप कर सकता है?
तर्क है कि चीन पहले ही कई राजनीतिक हस्तक्षेप कर चुका है और हाल में हुए प्रदर्शनों के पीछे की मुख्य वजह भी यही है.
हॉन्ग कॉन्ग की संसद और विधान परिषद बीजिंग के पक्ष में झुकी हुई है. 2017 में भारी विरोध के बावजूद एक क़ानून पारित किया गया था, जिसके तहत हॉन्ग कॉन्ग का चीफ़ एग्ज़िक्यूटिव बनने के उम्मीदवारों को चीन समर्थक समिति का अनुमोदन लेना ज़रूरी कर दिया गया.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
कैरी लैम को 2017 में हॉन्ग कॉन्ग का चीफ़ एग्ज़िक्यूटिव चुना गया था और उन्होंने ही विवादास्पद प्रत्यर्पण बिल पेश किया था.
हॉन्ग कॉन्ग विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डिक्सन मिंग सिंग का कहना है कि बीजिंग ने “अपनी शक्ति दिखाने के लिए बहुत कुछ किया है. उसने न तो एड्रेमी कैरी लैम को इस्तीफा देने दिया और न ही औपचारिक रूप से बिल वापस लेने दिया.”
वो कहते हैं, “अगर बीजिंग चाहे तो क्या वो कैरी लैम का इस्तीफ़ा नहीं ले सकता? बिल्कुल ले सकता है. लेकिन वो ये दिखाना चाहता है कि जनता की राय से ऐसा नहीं हो सकता है.”
कैरी लैम ने बेशक अपना पद छोड़ दिया है लेकिन उनकी जगह जो आएगा, उसके लिए ज़रूरी होगा कि उसे चीन का समर्थन मिला हो.
क्या चीन प्रदर्शनकारियोंको निशाना बना सकता है?
प्रदर्शनों की शुरुआत एक प्रत्यर्पण बिल को लेकर हुई थी. आलोचकों को आशंका थी कि इसका इस्तेमाल चीन द्वारा राजनीतिक एक्टिविस्टों को हॉन्ग कॉन्ग से चीन ले जाने के लिए किया जा सकता है जहां उन्हें सज़ा भी दी जा सकती है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
कैरी लैम ने कहा था कि ये बिल अब अस्तित्व में नहीं है मगर ऐसी कई रिपोर्टें आई हैं कि इस तरह के प्रावधानों को नज़रअंदाज़ करके भी चीन हॉन्ग कॉन्ग के नागरिकों को हिरासत में लेता रहा है.
हॉन्ग कॉन्ग में चीन सरकार की आलोचना करने वाली किताबों की बिक्री करने वाले गुई मिनहाई का मामला इसका उदाहरण है. 2015 में वो थाइलैंड में लापता हो गए थे. बाद में वह चीन में पाए गए जहां उन्हें 2003 में एक कार हादसे के मामले में गिरफ़्तार दिखाया गया.
चीन की एक अदालत ने उन्हें दो साल की सज़ा सुनाई थी. वह 2017 में रिहा कर दिए गए मगर एक ट्रेन से चीन जाते समय फिर उन्हें कथित तौर हिरासत में ले लिया गया. उसके बाद से वह कभी नज़र नहीं आए हैं.
ऐसे में अगर विरोध कर रहे एक्टिविस्टों को भले ही गिरफ़्तारी का ख़तरा न हो, उनमें से कुछ के परिजनों को चीन में यातनाएं मिलने की आशंका हो सकती है.
भले ही हॉन्ग कॉन्ग में चीन के सीधे दख़ल की आशंका जताई जा रही हो मगर इस तरह की अशांति से निपटने के लिए वह आर्थिक क़दमों का सहारा ले सकता है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
चीन को सौंपे जाने के बाद से ही हॉन्ग कॉन्ग आर्थिक रूप से काफ़ी मज़बूत रहा है. मगर अब चीन के शंघाई और शेनज़ेन जैसे शहरों ने भी तेज़ी से तरक्की की है.
अगर हॉन्ग कॉन्ग चीनी शासन को चुनौती देता रहेगा तो सरकार निवेश और व्यापार का रुख़ हॉन्ग कॉन्ग के बजाय अपने अन्य हिस्सों की ओर मोड़ सकती है.
इससे हॉन्ग कॉन्ग की अर्थव्यवस्था कमज़ोर होगी जिससे बिजिंग पर उसकी निर्भरता बढ़ेगी.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिककर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)