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क्या विनिवेश से भारत में बेरोज़गारी बढ़ने वाली है?

WikiFX
| 2019-08-18 22:26

एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesभारत में 24 सरकारी कंपनियों के विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया बड़े पैमाने प

भारत में 24 सरकारी कंपनियों के विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर शुरू हो रही है ताकि सरकार विनिवेश के अपने एक लाख पांच हज़ार करोड़ रुपये के लक्ष्य को पूरा कर सके.

इससे सरकारी कंपनियों के स्टाफ़ और कर्मचारियों के दिलों की धड़कनें भी तेज़ हो रही हैं.

उन्हें डर है कि सरकारी कंपनियों की मिलकियत प्राइवेट कंपनियों के हाथों में जाने के बाद उनकी नौकरियों को गंभीर ख़तरा पैदा होगा.

सरकारी कंपनियों के कर्मचारियों और मज़दूर यूनियनों ने निजीकरण का विरोध करने का फ़ैसला किया है.

सत्तारूढ़ बीजेपी की वैचारिक सहयोगी भारतीय मज़दूर संघ के महासचिव ब्रजेश उपाध्याय कहते हैं, “विनिवेश का विरोध हम दो कारणों से करते हैं. एक तो कंपनी का मालिक बदल जाता है. सरकार से मिल्कियत निजी हाथों में चली जाती है जिसके कारण कर्मचारियों की नौकरियों पर ख़तरा पैदा हो जाता है. विरोध का दूसरा कारण ये है कि हमारा ये अनुभव है निजी कंपनियों के टेकओवर के बाद उनकी दिलचस्पी कर्मचारियों में नहीं होती बल्कि उनकी दिलचस्पी पैसा इधर से उधर करने में होती है.”

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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesविनिवेश से जाएंगी नौकरियां?

योजनाएं बनाने के सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार, विनिवेश क़ानून के अंतर्गत होता है.

वो कहते हैं, “जहाँ तक मैंने बात की है ट्रेड यूनियन से वो भी नहीं चाहते कि ऐसी कंपनी में काम करें जो हर साल नुकसान कर रही है. उनका भी मन करता है कि एक मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी में काम करें. प्राइवेट सेक्टर जब आता है तो उसे लाभदायक बनाने की कोशिश करता है.”

विनिवेश की प्रक्रिया में अगर किसी एक सरकारी कंपनी का कुछ हिस्सा एक प्राइवेट कंपनी को बेच दिया जाता है तो इससे कंपनी की मिल्कियत और इसका मैनेजमेंट सरकार के पास ही होता है.

इसका मतलब ये हुआ कि स्टाफ और कर्मचारियों को नौकरी से निकालने या वर्कफ़ोर्स को कम करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है.

मगर अगर किसी सरकारी कंपनी को निजीकरण के अंतर्गत प्राइवेट सेक्टर को (51 प्रतिशत से अधिक हिस्सा) बेच दिया जाता है तो सरकार इसकी मिल्कियत और मैनेजमेंट खो देती है.

ऐसे में निजी कंपनी अपनी ज़रूरत के हिसाब से वर्कफ़ोर्स को कम कर सकती है या लोगों को नौकरियों से निकाल सकती है.

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इमेज कॉपीरइटBSNLयूनियनें मोदी सरकार से नाराज़

प्राइवेट सेक्टर वालों का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों में दक्षता और क्षमता में की कमी होती है और ये कि सरकारी कंपनियों में ज़रूरत से अधिक लोग काम करते हैं.

सरकारी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के कर्मचारी यूनियन के महासचिव पी. अभिमन्यु इस बात से असहमत हैं कि सरकारी कंपनियों में काम करने वाले प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारियों से कम पेशेवर होते हैं,.

वो कहते हैं, “हम पर लगे ये आरोप सही नहीं हैं कि हम कामचोर हैं या हमें काम नहीं आता. हमने कर्मचारियों को ग्राहक फ्रेंडली बनाने के लिए कई कैंपेन चलाए हैं. हममें वो सभी गुण हैं जो एक निजी कंपनी के स्टाफ़ में है.”

अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि नौकरी से निकालने का मतलब ये नहीं है कि कर्मचारी सड़क पर आ जाएंगे. उनके अनुसार, स्टाफ़ को वित्तीय पैकेज दिया जा सकता है.

वो आगे कहते हैं, “उन्हें वीआरएस देना पड़ेगा, प्रोविडेंट फण्ड देना पड़ता है और उन्हें ग्रेच्युटी देनी पड़ती है.”

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बीएसएनएल के स्टाफ़ की संख्या पौने दो लाख है और इसकी पहुँच देश भर में है.

लेकिन इसे पूँजी और आधुनिक तकनीक की सख़्त ज़रुरत है. सरकार ने इसे 4जी रोलआउट से बाहर रखा.

अभिमन्यु सरकार से बहुत नाराज़ हैं, “सरकार की रणनीति ये लगती ही कि इसे मरने दो. इसका आधुनिकरण न करो, इस में पूँजी न लगाओ.”

उनके अनुसार सरकार, 'जिओ को प्रोटेक्ट करने के लिए बीएसएनएल को नज़रअंदाज़ कर कर रही है.'

इमेज कॉपीरइटRAHUL KOTYAL/BBCबीएसएनएल और एयर इंडिया का विनिवेश

नीति आयोग के राजीव कुमार से जब मैंने इस आरोप के बारे में पूछा तो उन्हों ने इस पर टिपण्णी करने से इंकार कर दिया.

आम तौर से सरकार ये स्वीकार करती है कि फ़ोन कंपनी में ज़रूरत से अधिक वर्कफ़ोर्स है और इसके आधुनिकरण की ज़रूरत है. ऐसे में सरकार ने इसके कर्मचारियों को वीआरएस स्कीम का ऑफर दिया है.

अब तक ये नहीं बताया गया है कि बीएसएनएल का विनिवेश कब होगा लेकिन संकेत इस बात के हैं कि सरकार इस बारे में सोच रही है.

सरकार बीएसएनएल को 4जी स्पेक्ट्रम देने के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है और इच्छुक कर्मचारियों को एक आकर्षक वीआरएस की पेशकश की जा रही है.

एयर इंडिया भी सरकार की बड़ी कंपनियों में से एक है जिसका निजीकरण जल्द शुरू होने वाला है.

एयर इंडिया के वर्कर्स भी अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं. लेकिन सरकार ने एयर इंडिया के कर्मचारियों के हित को नज़रअंदाज़ नहीं किया है.

पिछले साल विनिवेश की शर्त ये रखी गई थी कि इस कंपनी का ख़रीदार कर्मचारियों को पांच सालों तक नौकरी से नहीं निकाल सकता. इस बार भी सरकार ने ऐसी शर्त रखी है लेकिन इसकी अवधि कम करके दो साल कर दी है.

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इमेज कॉपीरइटMYGOV.INबेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ रही

निजीकरण और विनिवेश एक ऐसे माहौल में हो रहा है जब देश बेरोज़गारी एक बड़े संकट के रूप में मौजूद है.

इस साल जारी की गई सरकारी एजेंसी “पीरिऑडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे” (पीएलएफ़एस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश भर में 2017-2018 में बेरोज़गार युवा पुरुषों की संख्या 1. 82 करोड़ थी जबकि 2.72 करोड़ महिलायें बेरोज़गार थीं.

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 33.3 करोड़ युवा आबादी थी जिनकी संख्या 2021 में 36.7 करोड़ तक छूने की संभावना है.

पीएलएफ़एस को शहरी क्षेत्रों में हर तीन महीने में रोज़गार के आंकड़ें देने और ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में साल में एक बार इसे मापने के उद्देश्य से शुरू किया गया था.

साल 2018 की अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग एक तिहाई रोज़गार योग्य युवा आबादी बेरोज़गार थी.

रिपोर्ट के मुताबिक़, 15-29 वर्ष की आयु के शहरी युवाओं में बेरोज़गारी, जो नौकरी की तलाश में हैं, लगातार तीन तिमाहियों से बढ़ रही है और दिसंबर तक बेरोज़गारी 23.7% पर थी.

2018 की दिसंबर तिमाही में युवा बेरोजगारी बिहार (40.9%) में सबसे अधिक थी, उसके बाद केरल (37%) और ओडिशा (35.7%), जबकि गुजरात में यह सबसे कम (9.6%) थी.

आम चुनावों से पहले बेरोज़गारी के सरकरी आंकड़ें लीक हो जाने पर केंद्र सरकार ने कहा था कि ये आंकड़ें फ़ाइनल रिपोर्ट का हिस्सा नहीं हैं.

इस साल की पहली तिमाही में गिरती आर्थिक विकास दर को देखते हुए अर्थशास्त्रियों ने बेरोज़गारी की संख्या गंभीर रूप से बढ़ने की आशंका जताई है.

Image caption

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार

लेकिन सरकार की राय में बेरोज़गारी के संकट को लोग बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहे हैं.

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार कहते हैं कि 'आम भारतीय आज अधिक खुशहाल है. ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या काफ़ी घटी है. लोगों को गैस और बिजली मिली है. किसानों को नक़द पैसे मिले हैं.'

राजीव कुमार कहते हैं, “सरकार ने कई स्कीम लागू की हैं जिसका असर ये है कि लोगों के जीवन में खुशहाली आई है, उनके जीवन का स्तर बेहतर हुआ है और देश के असंगठित क्षेत्र आम नागरिकों के पास पैसे पहले से अधिक हैं.”

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